Friday, May 30, 2008

हमने पर्वत काटे हैं अपने नाखूनों से

झील ताल सागरों को डाँटते है क्या करें
हंसो को उपाधि गिद्ध बांटते हैं क्या करें
जिंदगी के ये खेल देखे नही जाते हैं
बकरियाँ दहाड़टी हैं शेर मिमियाते हैं
कौयें गए जा रहें है कोकिलायें मौन हैं
हमको बता रहें हैं हम आख़िर कौन हैं
हम तो रहेंगे याद सदा यादगारों में
वो खोजे नही मिलेंगे कभी समाचारों में
हमने पर्वत काटे हैं अपने नाखूनों से
हमको क्या लेना देना दिल्ली के कानूनों से

3 comments:

Satyajeetprakash said...

वाकई हकीकत कहती है कहानी
पर ये गिद्ध नहीं, है हंस की जुबानी

Anonymous said...

tiwari ji beauty full blogxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx

Anonymous said...

वाकई हकीकत कहती है कहानी
पर ये गिद्ध नहीं, है हंस