झील ताल सागरों को डाँटते है क्या करें
हंसो को उपाधि गिद्ध बांटते हैं क्या करें
जिंदगी के ये खेल देखे नही जाते हैं
बकरियाँ दहाड़टी हैं शेर मिमियाते हैं
कौयें गए जा रहें है कोकिलायें मौन हैं
हमको बता रहें हैं हम आख़िर कौन हैं
हम तो रहेंगे याद सदा यादगारों में
वो खोजे नही मिलेंगे कभी समाचारों में
हमने पर्वत काटे हैं अपने नाखूनों से
हमको क्या लेना देना दिल्ली के कानूनों से
3 comments:
वाकई हकीकत कहती है कहानी
पर ये गिद्ध नहीं, है हंस की जुबानी
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वाकई हकीकत कहती है कहानी
पर ये गिद्ध नहीं, है हंस
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