जब रहा न गया कह दिया, जब सहा न गया कह दिया, इन्ही तरह के सवालात और हालात इंसान को बागी बनाते हैं । इंसान के धैर्य का इम्तिहान हर कोई लेना चाहता है यहाँ तक की भगवान भी ये जानते और समझते हुए की धैर्य और संयम की भी एक सीमा है पर जब दुनिया किसी के धैर्य संयम और मर्यादित आचरण को उसकी कमजोरी समझाने लगती है तो वो बेबस जिंदगी बगावत के रास्ते पर निकल पड़ती है , फिर रास्तों की कमी कहाँ।
आज हमे हमारे समाज में जो असामाजिक तत्व या मानवता के दुश्मन नज़र आते हैं वो शायद बचपन से ऐसे नही थे, उनके जन्म लेने पर भी उत्साह मनाया गया था, उनके माता पिता ने भी उनके सुनहरे भविष्य के सपने देखे थे पर हाय रे मासूम जिंदगी की बगावत - वक़्त और परिस्थिति ने उन्हें आज किस मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया और अब रास्ता कोई बचा ही नही ।
इनमे से कुछ तो वो लोग थे जिन्होंने जिन्दगी की कीमत को कम आँका और बेपरवाह भविष्य के सपने बुनने के लिए ग़लत मार्गों पर चले गए पर ऐसे लोगों की संख्या और भी ज्यादा है जिन्हें समाज ने, हमारी कुरीतियों ने, हमारे अंधत्व ने वहां तक पहुँचाया है ।
कभी मन को शांत कर किसी दीवार से टिक कर बैठ जाना और कुछ पल के लिए सिर्फ़ इतना सोचना की क्या आज मैं किसी एक जिन्दगी को रास्ता दे सकता हूँ, मैं जानता हूँ कुछ दिनों तक तक आवाज यही आएगी की पहले ख़ुद की जिन्दगी की तृष्णा तो पूरी कर लूँ वो तृष्णा जिसे पूरा करते करते हमारी कई पीढ़ी चली गई, पर एक दिन अनायास ही मन करेगा चलो कुछ किसी के लिए किया जाय, सोचने मात्र से ही मन में एक अजीब सी सिहरन पैदा होगी और जिस पल किसी गरीब, बेसहारा या समाज से दूर जा निकले किसी इंसान के कंधे पर हाथ रख कर उसकी समस्यायों का समाधान करोगे तुम्हे तुम्हारे जीने का मकसद नजर आएगा और फिर ये एक सतत प्रक्रिया होगी धीरे धीरे लोग आपके साथ जुड़ते चले जायेंगे और फिर भविष्य में शायद बेबस जिंदगियाँ बगावत के अलावा भी कोई रास्ता चुन पाएँगी।
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