बहोत से लोग बहोत सी उम्मीदें और बहोत अरमान मन में दफ़न किए चला तो जा रहा हूँ पर खुदा जाने क्यों, ऐसा कुछ भी नही जो पाने की चाहत हो और ऐसा भी कुछ भी नही जिसे हासिल कर लिया हो कुछ पास है तो बस एक कटी पतंग की तरह हवा में तैरती एक मासूम सी जिन्दगी।
कई बार सोचता हूँ की अब न सोचूंगा पर ये सोच मुझे और ज्यादा सोचने पर मजबूर कर देती है और मैं ख़ुद को भीड़ में तनहा पाता हूँ।
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