कई बार लगता है जैसे कल ही की तो बात है जब मैं घुटनों के बल चला करता था और घर का आँगन दुनिया की खुसी अपने में समेत कर मुझे पनाह देता था कल का वो दिन जब कुछ पास नही था पर सब कुछ था मेरे पास और आज सब कुछ होकर भी कुछ भी नही, मैं ख़ुद भी नही जानता की किस मंजिल को पाने की खातिर मैं सब कुछ बेच आया हूँ यहाँ तक की आंसू भी और अब रोने बैठा हूँ । मैंने जिंदगी को बहोत करीब से देखा है, मैंने देखा है कैसे साया भी साथ छोड़कर चला जाता है और आजमाया है उन चन्द अजनबियों को जो अपनों से भी आगे निकल गए, जब लोग निभा नही सकते तो जाने शुरुआत क्यों कर बैठते है मैंने ऐसे लोगों से निभाया है जो शर्तों पे जिया करते है जिनकी जिंदगी महज एक किराये का मकान है कल मैं किरायेदार था आज कोई और है और कल कोई और होगा, ऐसे लोग दुनिया से नही बल्कि ख़ुद से छल करते हैं, ये आज तक ख़ुद को नही बता पाए की मंजिल क्या है और दूसरो की मंजिल तय करना इनका पेशा है ।
जो सात समंदर पार करके भी मिलने आने की बात करते थे अब उनसे चौखट तक पार नही होती और जो चौखट के भीतर मेरे बने बैठे है उनमें और मुझमें जैसे सात समंदर का फासला हो, किसे अपना कहें और किससे उम्मीद करें अपनेपन की, ये बाज़ार और कीमत यहाँ का दस्तूर है बिकना सब को कुछ को मोहब्बत में और कुछ को दौलत में। भूल जाते हैं लोग की उनकी दो आँखे जैसे दुनिया देखा रही है वैसे ही दुनिया की कई आँखे उन्हें भी।
1 comment:
HI......... MR.ABHAY JI .I HAVE READ UR SOME BLOG'S.HE IS ALWAYS SO SAD ND PAINFULL.SO GOOD BUT I WANT KNOW WHAT IS UR LIFE.PLZ.....................
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