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Wednesday, December 17, 2008
तेरे जाने की कशमकश|
तुम मेरे पास हो पर हर बार तुम्हारा दूर जाने का वादा करना और फिर रिश्तों को वहीँ लाकर खड़ा कर देना, शायद इम्तिहान है और मेरे
Monday, December 15, 2008
तेरे मासूम सवाल
शुरुआत हुयी तो जुबान नही चलती थी सिर्फ़ उँगलियों के इशारे पर जरुरत से ज्यादा माँ बाप दे दिया करते थे फिर ऊँगली के बाद कदम चलना चालू हुए और ख़ुद चीजों के पास जा उठाने की आदत पड़ी और उसके बाद जब से बोलना सीखा , पता नही चीखना और चिल्लाना कब अपने आप सीख गया, मांगना कम हुआ छीनने की आदत पड़ गई और उसके बाद भी है पूरा नही होता
पता नही कितना चाहिए और कब तक चाहिए, अब तो लोग आने वाली पीढियों का भी भण्डार में हिस्सा तय कर देते हैं और कुछ लोग की जिन्हें आने वाली पीढी छोडो आने वाले दिन के भोजन का ठिकाना नही, कितना अजीब है तकदीर का लेखा
Friday, December 12, 2008
मुद्दतें हो गई मुस्कुराये |
कुछ तो वक्त ने बदल दिया और कुछ हालत ऐसी हो गई की बदले बदले नज़र आने लगे, वरना पहले भी जिंदा तो थे ही जीना चाहता जरुर हूँ पर केवल मौत के आने तक , इससे पहले लोंगों की कोशिश है और इसके बाद मुझमे चाह नही, सौदा करता हूँ सुबह से शाम तक कभी बिकता हूँ कभी खरीदा जाता हूँ, एक आदत सी पड़ गई है इस बाज़ार में जा बैठने की .... न जाएँ तो जाएँ कहाँ
शुरुआत में सब कुछ था तो पैसा नही था और आज पैसा है तो उसके सिवा कुछ भी नही , अकेला हूँ पर ख़ुद को अकेला कहने से डरता हूँ, क्योंकि कई बार कोशिश की कि कुछ अपने हों, कोई अपना हो, लोग अपने बने भी मगर साथ छोड़ गए शहर में कोई लाश निकलती है तो एक पल के लिए सहम जाता हूँ की कही ये मेरी तो नही, कभी मुझे कोई देखे भीड़ में तनहा तनहा अलग नज़र आऊंगा, इतने सारे लोगों ने मुझे अकेला छोड़ा की अब सुबह से शाम तक अपना बोझ ढोता हुआ जी लेता हूँ
पहले बहोत कुछ ऐसा था जिसे पाना था और वही सब जिसे पाया, मेरी मजबूरियों की वजह बन गई, जरुरत तो पहले भी सिर्फ़ दो वक़्त के खाने की थी और आज भी, पर इस छोटी सी चाह ने पता नही कहाँ कहाँ घुटने टेके और कितना सौदा किया ख़ुद के साथ
Friday, December 5, 2008
अब मै चुप रहूँगा
मैंने जब सोचा की आवाज उठाउंगा तो पता नही कितने नाजुक रिस्तों ने मुझे खामोश होने के लिए मजबूर किया, मैं जिसने देश की असली तस्वीर दिखाने की कोशिश की तो उसे रोक दिया गया क्योंकि शायद अपनों को ये डर था की कहीं मैं खो न जाऊँ, मुझे मालूम है एक एक शहादत की हकीक़त, और हर बन्दे का खून मां के खून का हवाला देता है बात सिर्फ़ मुंबई की नही है पुरे हिंदुस्तान , हर शहर, हर मोहल्ले, हर घर और हर परिवार की है, मैं अदना हूँ मगर हिन्दुस्तान की संवेदना हूँ ब्लास्ट के वक्त मैं किस राज्य में था इससे फर्क नही पड़ता, फर्क ये पड़ता है मैं अब तक जिन्दा क्यों हूँ , मैं एक आम आदमी हूँ लेकिन मेरी मां, मेरी बेटी, मेरी पत्नी, मेरे पिता और मेरा पड़ोसी सब इस आतंकवाद की आग में जले हैं आज मैं सो जाऊं तो मेरे पास नींद नही है
Friday, September 5, 2008
शर्तों की भेंट चढ़ते रिश्ते |
तुम ऐसा करोगे तो मैं ये नही करुँगी, ऐसा करता हूँ इसलिए तुमको अधिकार है ये करने का..... इस तरह की बहोत सी शर्तें जिन्हें इंसान सुबह से शाम तक निभाता है और फिर सोचता है की हम दोनों एक दुसरे के लिए बने हैं, मेरा तो ये मानना है की हम दोनों एक दुसरे की शर्तों का आदर करने के लिए बने हैं, प्यार तो एक बहाना मात्र है साथ जीने का। दो लोग एक साथ रह कर भी एक साथ नही होते क्योंकि साथ रहना शर्त थी साथ देना नही
Friday, May 30, 2008
पति पत्नी के रिश्ते इतने नाज़ुक क्यों
सारे रिश्ते तो भगवान ने बना कर भेजे बस एक रिश्ता पति पत्नी का ऐसा रिश्ता है जिसे इंसान ख़ुद चुनता है शायद यही वजह है की दुनिया में सिर्फ़ इसी रिश्ते को तोड़ने का प्रावधान भी है और इसी रिश्ते को तोड़ने के लिए कानून भी बनाया गया है और आज के दौर में यही एक रिश्ता सबसे ज्यादा नाज़ुक होता जा रहा है जिसका प्रमाण परिवार न्यायालय में रोज होते तलाक के फैसले या ससुराल में मौत की गोद में समाती दुल्हन और कई जगह दहेज़ प्रताड़ना के झूठे मुकदमों का शिकार हुआ पूरा परिवार है । हमने कभी ये समझाना जरुरी नही समझा की विद्यालयों में यौन शिक्षा से ज्यादा जरुरी सामाजिक शिक्षा थी हम पति पत्नी के रिश्तों के टूटने की वजह तकदीर बता देतें है बहोत से लोग तो यह भी कहते सुने गएँ हैं की भगवान की यही मरजी थी जबकि हकीकत तो यह की भगवान् की मरजी थी इसलिए कोई किसी का हमसफ़र बनता है और उसके ख़ुद के कर्म उसे अकेला रहने पर मजबूर कर देते हैं।
आज के दौर में इन रिश्तों को कमजोर करने में या इन रिश्तो का व्यावसायीकरण करने में पश्चिमी सभ्यता से बड़ी जिम्मेदारी हमारे देश के टीवी धारावाहिक और फ़िल्म की है जिन्होंने इस रिश्ते को सबसे अन्तिम स्थान दे रखा है। जब पति घर से बाहर दिन भर शाम के भोजन की जुगत में लगा होता है उस वक्त पत्नी ननद से बात करने का आधुनिक तरीका और सास को दिए जा सकने वाले जबाबों की ट्रेनिंग टीवी से ले रही होती है या जहाँ पत्नी घर से सारा दिन बाहर रह कर घर चलाने की जिम्मेदारी सम्हालती है वहाँ पति बेपरवाह होकर नारी का आधुनिकीकरण और पशिचिमिकरण होने के प्रमाण टीवी पर देखता है और अनायास ही अपने रिश्तों की तुलना मनोरंजन जगत के उस काल्पनिक रिश्तों से कर घर में ख़ुद के प्रति संदेह का वातावरन तैयार करता है।
ऐसा नही की केवल यही कारन है पति पत्नी के रिश्तों के कमजोर होने का पर इसने सदियों से चली आ रही पति पत्नी के बीच विश्वास की कड़ी को कमजोर किया है इसने पत्नी के मन में ससुराल को एक ज़ंग का मैदान बताने का प्रयास किया है।
पति पत्नी के रिश्तों को नाज़ुक बनाने में वधु पक्ष के रिश्तेदारों की भी भूमिका को बख्शा नही जा सकता जिस भी घर में बेटी का विवाह होने के बाद बेटी के ससुराल में दखल देने का प्रयास किया जाता है वहां भी अंजाम रिश्तों मे खटास ही पैदा करता है, बेटी के माँ बाप ये जताने का प्रयास करते हैं की हमने अपनी बेटी को बड़े ही प्यार से पाला है और हम उसका ससुराल में भी ध्यान रखते हैं जबकि उनका ये ध्यान रखना ही उनकी लाडली के लिए परेशानी का कारन बनता जाता है और एक दिन पति और पत्नी दो अलग अलग पक्षों में बंट जाते हैं । जब बेटी के माता पिता बेटी की ससुराल में दखल देते हैं या बेटी से घर में हुए छोटे छोटे झगडों के बारे में पूछते हैं तो शुरुआत में तो बेटी को बहोत अच्छा लगता की कोई उसका ख़याल रख रहा है और वह धीरे धीरे ससुराल की हर बात अपने माँ बाप से करने लगती है और यहीं से पति पत्नी के रिश्तों के बीच में लोगों का आना चालू होता है और उनमे दूरियां बढ़ना। जबकि पत्नी या पति दोनों को चाहिए की एक दूसरे की भावनाओं को समझें और ज्यादा से ज्यादा बातों का हल ख़ुद बात करके निकालने का प्रयास करें क्योंकि पति और पत्नी के बीच कोई आ ही नही सकता और अगर कोई है तो फिर ये मान लो पति पत्नी के बीच दूरियां है।
कई बार लोग आवेश में आकर बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान एक पल में करने का प्रयास भी करते हैं यह भी ग़लत है अगर किसी विषय पर बात करते करते बात लड़ाई में तब्दील हो जाए तो तत्काल उस बात को छोड़कर दूसरी कोई अच्छी बात चालू करने से भी लड़ाई झगडे को समाप्त किया जा सकता है।
नारी और पुरूष के बीच कार्यों का बंटवारा भी आज के दौर में पारिवारिक विवाद का कारन बनता जा रहा है नारी जहाँ गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारियों से दूर भाग रही है वहीं पुरूष उसे मात्र घर चलाने की मशीन समझकर प्रताडित करने में भी पीछे नही है और यहाँ दोनों ग़लत हैं, ऐसे माहौल में पति और पत्नी को बैठ कर तय करना चाहिए की घर से बाहर रह कर पैसा कमाना दोनों के लिए कितना जरुरी है अगर पति की आमदनी से घर नही चलता और पत्नी पैसा कमाने में पति का साथ देती है तो उसे एक बार घर की परिस्थितियों पर नज़र जरूर डालना चाहिए और अगर परिवार के बड़े सदस्यों को या पति को उसका बाहर काम करना अच्छा नही लगता तो लोगों को काम करने की आवश्यकता के बारे में समझा कर ही कोई फैसला करना चाहिए और अगर लोग नही मानते तो इसे मुद्दा नही बनाना चाहिए, कई बार देखा गया है की पत्नी मात्र इस लिए काम करना चाहती है की उसे घर में खाली बैठना अच्छा नही लगता ऐसे में मैं यह नही कहता की वो ग़लत है पर उसे एक बार ये जरूर समझाना चाहिए की क्या उसकी इस बात पर उसके घर और परिवार के लोग तैयार हो जायेंगे अगर हाँ तो कोई दिक्कत ही नही पर अगर लगता है की ऐसा मुमकिन नही है टैब इस तरह के मुद्दों पर लड़ाई लड़ कर सिर्फ़ आपसी कलह पैदा किया जा सकता है ऐसे में पत्नी को अपने पति की अपनी समस्याओं को बताना चाहिए और उसे विश्वास में लेकर ही अगला कदम उठाना चाहिए मेरा विश्वास है की अगर आप पारिवारिक जिम्मेदारियों को और दाम्पत्य जीवन की खुशियों को कुर्बान करके अपना वक्त बिताने का रास्ता नही खोज रहे हो तो आपके पति जरूर आप के साथ होंगे और वो अपने परिवार के अन्य सदस्यों को भी इसके लिए तैयार कर ही लेंगे। पत्नी को एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए की कार्यों के वर्गीकरण में पहले पत्नी को घर सँभालने का दायित्व दिया गया था और पति को घर चलाने के लिए आवश्यक संशाधन जुटाने का इसे सुधरा तो जा सकता है पर बदला नही जा सकता अगर आप अपने घर की जिम्मेदारियों को निभाने के साथ साथ कुछ और काम कर सकती हैं तो निश्चित ही आप को इसकी अनुमति मिलना चाहिए पर अगर आप घर के तमाम दायित्वों से दूर भाग कर काम करना चाहते हो तो आपको दुबारा सोचना होगा। पति को भी हमेशा एक बात याद रखनी चाहिए की किसी के घर का चिराग किसी के अरमानों से पाली हुई बेटी उसके साथ आई है पति के लिए अपने सारे सगे संबंधियों को छोड़ कर आई है तो पति को इस बात का हमेशा ख़याल रखना चाहिए की अब पति को उसे इतना खुश रखना है उसे कभी किसी रिश्ते की कमी महसूस ना हो।
आज के दौर में इन रिश्तों को कमजोर करने में या इन रिश्तो का व्यावसायीकरण करने में पश्चिमी सभ्यता से बड़ी जिम्मेदारी हमारे देश के टीवी धारावाहिक और फ़िल्म की है जिन्होंने इस रिश्ते को सबसे अन्तिम स्थान दे रखा है। जब पति घर से बाहर दिन भर शाम के भोजन की जुगत में लगा होता है उस वक्त पत्नी ननद से बात करने का आधुनिक तरीका और सास को दिए जा सकने वाले जबाबों की ट्रेनिंग टीवी से ले रही होती है या जहाँ पत्नी घर से सारा दिन बाहर रह कर घर चलाने की जिम्मेदारी सम्हालती है वहाँ पति बेपरवाह होकर नारी का आधुनिकीकरण और पशिचिमिकरण होने के प्रमाण टीवी पर देखता है और अनायास ही अपने रिश्तों की तुलना मनोरंजन जगत के उस काल्पनिक रिश्तों से कर घर में ख़ुद के प्रति संदेह का वातावरन तैयार करता है।
ऐसा नही की केवल यही कारन है पति पत्नी के रिश्तों के कमजोर होने का पर इसने सदियों से चली आ रही पति पत्नी के बीच विश्वास की कड़ी को कमजोर किया है इसने पत्नी के मन में ससुराल को एक ज़ंग का मैदान बताने का प्रयास किया है।
पति पत्नी के रिश्तों को नाज़ुक बनाने में वधु पक्ष के रिश्तेदारों की भी भूमिका को बख्शा नही जा सकता जिस भी घर में बेटी का विवाह होने के बाद बेटी के ससुराल में दखल देने का प्रयास किया जाता है वहां भी अंजाम रिश्तों मे खटास ही पैदा करता है, बेटी के माँ बाप ये जताने का प्रयास करते हैं की हमने अपनी बेटी को बड़े ही प्यार से पाला है और हम उसका ससुराल में भी ध्यान रखते हैं जबकि उनका ये ध्यान रखना ही उनकी लाडली के लिए परेशानी का कारन बनता जाता है और एक दिन पति और पत्नी दो अलग अलग पक्षों में बंट जाते हैं । जब बेटी के माता पिता बेटी की ससुराल में दखल देते हैं या बेटी से घर में हुए छोटे छोटे झगडों के बारे में पूछते हैं तो शुरुआत में तो बेटी को बहोत अच्छा लगता की कोई उसका ख़याल रख रहा है और वह धीरे धीरे ससुराल की हर बात अपने माँ बाप से करने लगती है और यहीं से पति पत्नी के रिश्तों के बीच में लोगों का आना चालू होता है और उनमे दूरियां बढ़ना। जबकि पत्नी या पति दोनों को चाहिए की एक दूसरे की भावनाओं को समझें और ज्यादा से ज्यादा बातों का हल ख़ुद बात करके निकालने का प्रयास करें क्योंकि पति और पत्नी के बीच कोई आ ही नही सकता और अगर कोई है तो फिर ये मान लो पति पत्नी के बीच दूरियां है।
कई बार लोग आवेश में आकर बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान एक पल में करने का प्रयास भी करते हैं यह भी ग़लत है अगर किसी विषय पर बात करते करते बात लड़ाई में तब्दील हो जाए तो तत्काल उस बात को छोड़कर दूसरी कोई अच्छी बात चालू करने से भी लड़ाई झगडे को समाप्त किया जा सकता है।
नारी और पुरूष के बीच कार्यों का बंटवारा भी आज के दौर में पारिवारिक विवाद का कारन बनता जा रहा है नारी जहाँ गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारियों से दूर भाग रही है वहीं पुरूष उसे मात्र घर चलाने की मशीन समझकर प्रताडित करने में भी पीछे नही है और यहाँ दोनों ग़लत हैं, ऐसे माहौल में पति और पत्नी को बैठ कर तय करना चाहिए की घर से बाहर रह कर पैसा कमाना दोनों के लिए कितना जरुरी है अगर पति की आमदनी से घर नही चलता और पत्नी पैसा कमाने में पति का साथ देती है तो उसे एक बार घर की परिस्थितियों पर नज़र जरूर डालना चाहिए और अगर परिवार के बड़े सदस्यों को या पति को उसका बाहर काम करना अच्छा नही लगता तो लोगों को काम करने की आवश्यकता के बारे में समझा कर ही कोई फैसला करना चाहिए और अगर लोग नही मानते तो इसे मुद्दा नही बनाना चाहिए, कई बार देखा गया है की पत्नी मात्र इस लिए काम करना चाहती है की उसे घर में खाली बैठना अच्छा नही लगता ऐसे में मैं यह नही कहता की वो ग़लत है पर उसे एक बार ये जरूर समझाना चाहिए की क्या उसकी इस बात पर उसके घर और परिवार के लोग तैयार हो जायेंगे अगर हाँ तो कोई दिक्कत ही नही पर अगर लगता है की ऐसा मुमकिन नही है टैब इस तरह के मुद्दों पर लड़ाई लड़ कर सिर्फ़ आपसी कलह पैदा किया जा सकता है ऐसे में पत्नी को अपने पति की अपनी समस्याओं को बताना चाहिए और उसे विश्वास में लेकर ही अगला कदम उठाना चाहिए मेरा विश्वास है की अगर आप पारिवारिक जिम्मेदारियों को और दाम्पत्य जीवन की खुशियों को कुर्बान करके अपना वक्त बिताने का रास्ता नही खोज रहे हो तो आपके पति जरूर आप के साथ होंगे और वो अपने परिवार के अन्य सदस्यों को भी इसके लिए तैयार कर ही लेंगे। पत्नी को एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए की कार्यों के वर्गीकरण में पहले पत्नी को घर सँभालने का दायित्व दिया गया था और पति को घर चलाने के लिए आवश्यक संशाधन जुटाने का इसे सुधरा तो जा सकता है पर बदला नही जा सकता अगर आप अपने घर की जिम्मेदारियों को निभाने के साथ साथ कुछ और काम कर सकती हैं तो निश्चित ही आप को इसकी अनुमति मिलना चाहिए पर अगर आप घर के तमाम दायित्वों से दूर भाग कर काम करना चाहते हो तो आपको दुबारा सोचना होगा। पति को भी हमेशा एक बात याद रखनी चाहिए की किसी के घर का चिराग किसी के अरमानों से पाली हुई बेटी उसके साथ आई है पति के लिए अपने सारे सगे संबंधियों को छोड़ कर आई है तो पति को इस बात का हमेशा ख़याल रखना चाहिए की अब पति को उसे इतना खुश रखना है उसे कभी किसी रिश्ते की कमी महसूस ना हो।
मैं नारी शाश्क्तिकरण का विरोधी नही पर नारी के होते पश्चिमीकरण से आने वाली पीढ़ी पर जो दुष्प्रभाव होगा उससे बाहर निकालना हममे से किसी के बस की बात नही होगी, झूठे हैं वो लोग जो कहते हैं की हमारे देश की नारी अबला है हमने नारी को देवी कहा, हमने नारी के पूजन की बात की हमने नारी को महत्व देने की पराकाष्ठा तबकर दी जब देश तक को नारी का स्थान देकर भारत माता की संज्ञा दी और कुछ चुनिंदे लोग उसे अबला कह कर हमें राक्षस साबित करने में लगे हैं।।
हमने पर्वत काटे हैं अपने नाखूनों से
झील ताल सागरों को डाँटते है क्या करें
हंसो को उपाधि गिद्ध बांटते हैं क्या करें
जिंदगी के ये खेल देखे नही जाते हैं
बकरियाँ दहाड़टी हैं शेर मिमियाते हैं
कौयें गए जा रहें है कोकिलायें मौन हैं
हमको बता रहें हैं हम आख़िर कौन हैं
हम तो रहेंगे याद सदा यादगारों में
वो खोजे नही मिलेंगे कभी समाचारों में
हमने पर्वत काटे हैं अपने नाखूनों से
हमको क्या लेना देना दिल्ली के कानूनों से
हंसो को उपाधि गिद्ध बांटते हैं क्या करें
जिंदगी के ये खेल देखे नही जाते हैं
बकरियाँ दहाड़टी हैं शेर मिमियाते हैं
कौयें गए जा रहें है कोकिलायें मौन हैं
हमको बता रहें हैं हम आख़िर कौन हैं
हम तो रहेंगे याद सदा यादगारों में
वो खोजे नही मिलेंगे कभी समाचारों में
हमने पर्वत काटे हैं अपने नाखूनों से
हमको क्या लेना देना दिल्ली के कानूनों से
नज़र मे रख कर नज़र से गिराया
आज के दौर में इंसान दो भागो में बटा हुआ है एक वो जो साथ देने के लिए साथ रहना चाहता है और दूसरा साथ रहने के लिए साथ देना, स्वार्थ दोनों के मन है, पर फिर भी दोनों ही लोग अपनी कुछ बुराइयों को नज़र अंदाज कर एक रास्ता खोजते हैं जहाँ साथ साथ चला जा सके।
जिंदगी भीख में नही मिलती
कुछ लोग ख़ुद को जिदगी का सौदागर समझते हैं और खेलते है लोगो की जिंदगी से और कुछ ऐसे भी लोग हैं जिन्हें ख़ुद से डर लगता है, आज का दौर वो नही रहा की जिन्दगी मुफ्त में मिल जायेगी, आज तो आकर छीनने का दौर है, क्यों इंतज़ार करते हो वक्त के बदलने, का उठो कूच करो वक्त तो नही बदलने वाला पर तुम दुनिया बदल सकते हो। पहले निश्चय कर लो की जिन्दगी को कितना निभा पाओगे अगर हो माद्दा आइना देखने का तब ही दुनिया की तस्वीर बदल सकता है कोई वरना नारों से हल्ला तो मचाया ही जा रहा है और इसके सिवा कुछ और हो नही सकता। अभी भी वक्त है पानी के सर के ऊपर से गुजरने में पर चैन से बैठ कर साँस लेने का वक्त शायद अब नही, आज सड़क पर उतरो और देखो उन लोगों की तरफ़ जो दिखने में तोहम जैसे ही हैं पर जिन्दगी उनकी कमाल है और जिंदगी हमारी सवाल है ।
मुझे आजमाने वाले आजमा के रोये
कई बार लगता है जैसे कल ही की तो बात है जब मैं घुटनों के बल चला करता था और घर का आँगन दुनिया की खुसी अपने में समेत कर मुझे पनाह देता था कल का वो दिन जब कुछ पास नही था पर सब कुछ था मेरे पास और आज सब कुछ होकर भी कुछ भी नही, मैं ख़ुद भी नही जानता की किस मंजिल को पाने की खातिर मैं सब कुछ बेच आया हूँ यहाँ तक की आंसू भी और अब रोने बैठा हूँ । मैंने जिंदगी को बहोत करीब से देखा है, मैंने देखा है कैसे साया भी साथ छोड़कर चला जाता है और आजमाया है उन चन्द अजनबियों को जो अपनों से भी आगे निकल गए, जब लोग निभा नही सकते तो जाने शुरुआत क्यों कर बैठते है मैंने ऐसे लोगों से निभाया है जो शर्तों पे जिया करते है जिनकी जिंदगी महज एक किराये का मकान है कल मैं किरायेदार था आज कोई और है और कल कोई और होगा, ऐसे लोग दुनिया से नही बल्कि ख़ुद से छल करते हैं, ये आज तक ख़ुद को नही बता पाए की मंजिल क्या है और दूसरो की मंजिल तय करना इनका पेशा है ।
जो सात समंदर पार करके भी मिलने आने की बात करते थे अब उनसे चौखट तक पार नही होती और जो चौखट के भीतर मेरे बने बैठे है उनमें और मुझमें जैसे सात समंदर का फासला हो, किसे अपना कहें और किससे उम्मीद करें अपनेपन की, ये बाज़ार और कीमत यहाँ का दस्तूर है बिकना सब को कुछ को मोहब्बत में और कुछ को दौलत में। भूल जाते हैं लोग की उनकी दो आँखे जैसे दुनिया देखा रही है वैसे ही दुनिया की कई आँखे उन्हें भी।
जो सात समंदर पार करके भी मिलने आने की बात करते थे अब उनसे चौखट तक पार नही होती और जो चौखट के भीतर मेरे बने बैठे है उनमें और मुझमें जैसे सात समंदर का फासला हो, किसे अपना कहें और किससे उम्मीद करें अपनेपन की, ये बाज़ार और कीमत यहाँ का दस्तूर है बिकना सब को कुछ को मोहब्बत में और कुछ को दौलत में। भूल जाते हैं लोग की उनकी दो आँखे जैसे दुनिया देखा रही है वैसे ही दुनिया की कई आँखे उन्हें भी।
Thursday, May 29, 2008
अभय तिवारी बन कर देखो
मुझे लेकर लोगों के मन में कई तरह की भ्रांतियाँ है, कुछ की नज़र नजरों से गिराने को बेताब है तो कुछ लोग हैं तैयार नजर फेर कर जाने को, मेरा अपराध सिर्फ़ इतना है की मुझे नही आता छल करना, कपट नही रहता मेरे मन में और जैसा दिखता है बोल देता हूँ।
क्यों कसते हो ताने मुझ पर कभी ख़ुद को मेरी जगह रख कर देखना, तब अहसास होगा की कोसना कितना आसान है और सहना कितना मुश्किल।
क्यों कसते हो ताने मुझ पर कभी ख़ुद को मेरी जगह रख कर देखना, तब अहसास होगा की कोसना कितना आसान है और सहना कितना मुश्किल।
बेबस जिंदगी की बगावत
जब रहा न गया कह दिया, जब सहा न गया कह दिया, इन्ही तरह के सवालात और हालात इंसान को बागी बनाते हैं । इंसान के धैर्य का इम्तिहान हर कोई लेना चाहता है यहाँ तक की भगवान भी ये जानते और समझते हुए की धैर्य और संयम की भी एक सीमा है पर जब दुनिया किसी के धैर्य संयम और मर्यादित आचरण को उसकी कमजोरी समझाने लगती है तो वो बेबस जिंदगी बगावत के रास्ते पर निकल पड़ती है , फिर रास्तों की कमी कहाँ।
आज हमे हमारे समाज में जो असामाजिक तत्व या मानवता के दुश्मन नज़र आते हैं वो शायद बचपन से ऐसे नही थे, उनके जन्म लेने पर भी उत्साह मनाया गया था, उनके माता पिता ने भी उनके सुनहरे भविष्य के सपने देखे थे पर हाय रे मासूम जिंदगी की बगावत - वक़्त और परिस्थिति ने उन्हें आज किस मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया और अब रास्ता कोई बचा ही नही ।
इनमे से कुछ तो वो लोग थे जिन्होंने जिन्दगी की कीमत को कम आँका और बेपरवाह भविष्य के सपने बुनने के लिए ग़लत मार्गों पर चले गए पर ऐसे लोगों की संख्या और भी ज्यादा है जिन्हें समाज ने, हमारी कुरीतियों ने, हमारे अंधत्व ने वहां तक पहुँचाया है ।
कभी मन को शांत कर किसी दीवार से टिक कर बैठ जाना और कुछ पल के लिए सिर्फ़ इतना सोचना की क्या आज मैं किसी एक जिन्दगी को रास्ता दे सकता हूँ, मैं जानता हूँ कुछ दिनों तक तक आवाज यही आएगी की पहले ख़ुद की जिन्दगी की तृष्णा तो पूरी कर लूँ वो तृष्णा जिसे पूरा करते करते हमारी कई पीढ़ी चली गई, पर एक दिन अनायास ही मन करेगा चलो कुछ किसी के लिए किया जाय, सोचने मात्र से ही मन में एक अजीब सी सिहरन पैदा होगी और जिस पल किसी गरीब, बेसहारा या समाज से दूर जा निकले किसी इंसान के कंधे पर हाथ रख कर उसकी समस्यायों का समाधान करोगे तुम्हे तुम्हारे जीने का मकसद नजर आएगा और फिर ये एक सतत प्रक्रिया होगी धीरे धीरे लोग आपके साथ जुड़ते चले जायेंगे और फिर भविष्य में शायद बेबस जिंदगियाँ बगावत के अलावा भी कोई रास्ता चुन पाएँगी।
आज हमे हमारे समाज में जो असामाजिक तत्व या मानवता के दुश्मन नज़र आते हैं वो शायद बचपन से ऐसे नही थे, उनके जन्म लेने पर भी उत्साह मनाया गया था, उनके माता पिता ने भी उनके सुनहरे भविष्य के सपने देखे थे पर हाय रे मासूम जिंदगी की बगावत - वक़्त और परिस्थिति ने उन्हें आज किस मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया और अब रास्ता कोई बचा ही नही ।
इनमे से कुछ तो वो लोग थे जिन्होंने जिन्दगी की कीमत को कम आँका और बेपरवाह भविष्य के सपने बुनने के लिए ग़लत मार्गों पर चले गए पर ऐसे लोगों की संख्या और भी ज्यादा है जिन्हें समाज ने, हमारी कुरीतियों ने, हमारे अंधत्व ने वहां तक पहुँचाया है ।
कभी मन को शांत कर किसी दीवार से टिक कर बैठ जाना और कुछ पल के लिए सिर्फ़ इतना सोचना की क्या आज मैं किसी एक जिन्दगी को रास्ता दे सकता हूँ, मैं जानता हूँ कुछ दिनों तक तक आवाज यही आएगी की पहले ख़ुद की जिन्दगी की तृष्णा तो पूरी कर लूँ वो तृष्णा जिसे पूरा करते करते हमारी कई पीढ़ी चली गई, पर एक दिन अनायास ही मन करेगा चलो कुछ किसी के लिए किया जाय, सोचने मात्र से ही मन में एक अजीब सी सिहरन पैदा होगी और जिस पल किसी गरीब, बेसहारा या समाज से दूर जा निकले किसी इंसान के कंधे पर हाथ रख कर उसकी समस्यायों का समाधान करोगे तुम्हे तुम्हारे जीने का मकसद नजर आएगा और फिर ये एक सतत प्रक्रिया होगी धीरे धीरे लोग आपके साथ जुड़ते चले जायेंगे और फिर भविष्य में शायद बेबस जिंदगियाँ बगावत के अलावा भी कोई रास्ता चुन पाएँगी।
Wednesday, May 28, 2008
लोगों से सुना है की परेशान हूँ मैं
एक दौर वो भी था जब कुछ देर ख़ुद को देख लिया करता था और ख़ुद को ख़ुद के करीब पाता था पर आज जाने किस मंजिल तक पहुच गया हूँ की ख़ुद से ही दूर आ गया हूँ मैं ।
बहोत से लोग बहोत सी उम्मीदें और बहोत अरमान मन में दफ़न किए चला तो जा रहा हूँ पर खुदा जाने क्यों, ऐसा कुछ भी नही जो पाने की चाहत हो और ऐसा भी कुछ भी नही जिसे हासिल कर लिया हो कुछ पास है तो बस एक कटी पतंग की तरह हवा में तैरती एक मासूम सी जिन्दगी।
कई बार सोचता हूँ की अब न सोचूंगा पर ये सोच मुझे और ज्यादा सोचने पर मजबूर कर देती है और मैं ख़ुद को भीड़ में तनहा पाता हूँ।
Tuesday, May 27, 2008
चलो कुछ बदल कर देखें
हम जिंदा हैं इसलिए नही की हम ने जीना सीख लिया है, बल्कि इसलिए की हमे जीने की आदत सी हो गई है या कहिये लत लग गई है, हम अच्छा और बुरा भी अपने स्वार्थों के साथ तय करते हैं अगर किसी के साथ कुछ बुरा होने में हमारा भला हो तो हमे वो भी मंजूर है और दुनिया की कितनी भी अच्छी बात अगर कहीं से हमें नुकसान पहुँचा रही हो तो उसके अच्छे होने में भी हम सवाल और संदेह कर सकते हैं-
अगर जज्बा है मन में कुछ कर गुजरने का तोअब और ज्यादा इंतज़ार मत करो, एक कदम आप बढाओ तो सही रास्ते में मैं पूरे जोश और जूनून के साथ आपका इंतज़ार कर रहा हूँ हम चलना चालू करेंगे और लोग हमारे साथ होते चले जायेंगे।
मैंने अपना पहले कदम रख दिया अब इंतज़ार है आपके विचारों का।
अगर जज्बा है मन में कुछ कर गुजरने का तोअब और ज्यादा इंतज़ार मत करो, एक कदम आप बढाओ तो सही रास्ते में मैं पूरे जोश और जूनून के साथ आपका इंतज़ार कर रहा हूँ हम चलना चालू करेंगे और लोग हमारे साथ होते चले जायेंगे।
मैंने अपना पहले कदम रख दिया अब इंतज़ार है आपके विचारों का।
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