परिवर्तन और व्यापर कि ऐसी बयार चली है की इंसान और इंसानियत भी इससे नहीं बच सकी, इंसान चंद रुपयों की जरुरत के लिए इतना बदल गया कि उसे अपना धरम और ईमान भी सरेबाजार नीलाम करने में कोई परहेज नहीं रहा, आज आलम ये है की आदमी अपने अस्तित्व और वजूद को साबित करने के लिए या अपने थोड़े से स्वार्थ की पूर्ती के लिए किसी का कितना भी बड़ा नुकसान करने से पीछे नहीं हटता बल्कि उसे दूसरों को प्रताड़ित करने में आनंद की अनुभूति होती है । शायद आज के इंसान को ये लगता है कि उनकी उन्नति दूसरों की अवनती पर निर्भर है यही कारन है की वो दूसरों को असफल कर अपनी सफलता का मार्ग खोजता है ।
छोटी सी जिंदगी है, वो भी आज है पर कल का कोई ठिकाना नहीं, फिर हम इसे आपसी सौहार्द और प्रेम के साथ क्यों नहीं बिता सकते, क्यों नहीं हम लोगों की ख़ुशी और मुस्कराहट का कारक बन सकते, क्यों नहीं हम आपसी मतभेदों और मनभेदों को दूर कर अपने आस पास खुशहाली का वातावरण तैयार कर सकते ...... शायद इसलिए कि हमारा मन और मस्तिष्क अब स्वाभिमानी नहीं अभिमानी हो चुका है, हम कुछ हासिल करने के नाम पर बहोत कुछ खो चुके हैं, हम जितनी उच्च स्थति को हासिल कर रहे हैं उतनी ही निम्नता और संकीर्णता हमारे ह्रदय में समाती जा रही है, पैसा अब हमारी जरुरत नहीं बल्कि हमारे अभिमान का कारक बन चुका है, अब घरों पर केवल नाम और ओहदे बचे है इंसान और इंसानियत पद और प्रतिष्ठा के दांवपेंच में कहीं दफ़न हो चुकी है ।
हमें याद रखना चाहिए कि हमारे कर्म ही हमारी सफलता का निर्धारण कर सकते हैं, अगर हम सोचते है की किसी को परेशान करके हम चैन से जी पाएंगे तो ये हमारी गलत फहमी है क्योंकि अगर हम किसी के साथ बुरा करने का प्रयास करते हैं तो इश्वर हमारे साथ भी बुरा करने वाला कहीं ना कहीं तैयार रखता है और वक़्त आते ही हमें हमारे कर्मों का फल मिल जाता है।
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