Sunday, October 14, 2012

Arvind Kejarival and Indian Politics

भारतीय राजनीति में अरविन्द केजरीवाल 
 
अरविन्द केजरीवाल वर्तमान में सभी राजनीतिक दलों के लिए एक पहेली बने हुए हैं, कुछ दलों को लगता है की उनके इस आन्दोलन का लाभ उन्हें आने वाले चुनावों में मिलेगा तो कुछ दल अभी तक  भी तय नहीं कर पा रहें हैं की केजरीवाल के मामले में उनकी क्या भूमिका होनी चाहिए, नतीजतन देश के मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग राजनीती के इस भंवर को समझ नहीं पा रहा है और भ्रम और अनिर्णायक अवस्था का शिकार बना हुआ है।
कुछ माह पहले तक जब केजरीवाल, अन्ना और उनकी टीम केवल कांग्रेस का विरोध करती थी तब भाजपा समेत कई राजनीतिक दलों ने इसे भुनाने का प्रयास किया और आगामी चुनावों में कांग्रेस की हार को अपनी जीत के रूप में देखने लगे पर ये ख्वाब ज्यादा दिन तक कोई भी दल नहीं देख पाया क्योंकि केजरीवाल ने धीरे धीरे सभी राजनीतिक दलों को अपना शिकार बनाना शुरू कर दिया और खुद एक नए  राजनीतिक दल के साथ देश के सामने खड़े हो गए।
केजरीवाल देश की नब्ज समझ चुके थे पर अन्ना हजारे और किरण बेदी को केजरीवाल को समझने में वक़्त लगा और जब तक केजरीवाल की अति महत्वाकांक्षा इनके समझ में आती तब तक केजरीवाल अन्ना के आन्दोलन, विचारधारा, और जनसमर्थन को सीढियां बना कर रौंदते हुए आगे निकल गए।
जिन राजनीतिक दलों ने अन्ना और केजरीवाल को कांग्रेस विरोधी समझ कर अपना  समर्थन दिया और उनके साथ खड़ी भीड़ को अपने वोटबैंक में परिवर्तित करने का ख्वाब देखकर जंतर मंतर तक पहुच गए उनके लिए केजरीवाल गले में फंसी एक हड्डी की तरह हो गए जिसे निगलना और उगलना दोनों अब उनके बस में नहीं।
वर्तमान परिद्रश्य में अब  देश के  नागरिक को तय करना होगा की क्या अब हमें ऐसे नेतृत्व की ही आवश्यकता है जो देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था,  संसदीय परंपरा,  न्यायायिक व्यवस्था जांच एजेंसियों कि निष्ठा, सबको  एक सिरे से अस्वीकार कर दे और एक ऐसे रामराज की परिकल्पना लोगों के ह्रदय में बसाने की कोशिश करे जो भगवान राम स्वयं भी नहीं कर पाए।
अनशन और आन्दोलन देश के नागरिक का अधिकार है पर जिस अधिकार को पाने का हम पुरजोर प्रयास कर रहे हैं उसी देश की नागरिकता हमसे कुछ कर्तव्यों की भी अपेक्षा रखती है मसलन केजरीवाल को  हमेशा याद रखना चाहिए की उनकी अतिमहत्वाकांक्षा कही अन्तर्राष्टीय परिद्रश्य में  भारत की शाख और गरिमा को तो धूमिल नहीं कर रही है,  उन्हें  ध्यान रखना चाहिए की कहीं वो सही मुद्दों को गलत जगह तो नहीं उठाने का प्रयास कर रहे हैं, उन्हें ध्यान रखना चाहिए की जिन जांच एजेंसियों को वो नकारा मान रहे हैं उन्होंने ही इसी सत्तारूढ़ कांग्रेस के कई मंत्रियों को जेल जाने के लिए विवश किया है।
टीम अन्ना सरकार के खिलाफ जिस अविश्वास की  नीव पर अस्तित्व में आई उसी अविश्वास का खुद शिकार हो गयी और कई टुकड़ों में विभक्त टीम अन्ना आज अस्तित्व में नहीं है, जो अन्ना देश को एक सशक्त लोकपाल देने आये थे वो एक अदूरदर्शी केजरीवाल देकर वापस लौट गए,  केजरीवाल जिस संसद को अन्ना को साक्षी बनाकर कोसते आये आज उसी संसद में जाने की बाटजोह रहे हैं,  जो भाजपा कांग्रेस विरोधी अनशन और आंदोलनों की बैसाखी के सहारे संसद में बैठना चाहती थी उस भाजपा को केजरीवाल ने दूध में गिरी मक्खी की तरह निकाल कर अलग कर दिया और खुद संसद की ओर नजरे जमाने लगे।
शायद ये राजनीति नहीं राजनीति का विकृत रूप है जब केजरीवाल संसद को चौराहे पर खडा करते थे तब भाजपा को ना तो संसदीय मर्यादा याद आई और न लोकतान्त्रिक तौर तरीकों से चुनी हुयी सरकार की आबरू की चिंता हुयी जो जनमत और निर्वाचन प्रणाली पर सीधा प्रहार था, किसी भी राजनीतिक दल का ध्यान इस ओर नहीं गया की इससे देश में अस्थिरता और असुरक्षा का वातावरण तैयार हो रहा है, अंतर्राष्टीय  स्तर  पर  भारत  की  शाख  गिर रही है लोग भ्रम का शिकार हो रहे हैं  जब की सभी राजनीतिक दल जानते थे की कोई भी केजरीवाल और अन्ना की आकांक्षाओं और आशाओं पर खरा नहीं उतर सकता क्योंकि उनकी मांग अनंत थी और हठ के स्वरुप में रोज बदलते रहने वाली थीं, ये लोग भीड़ दिखा कर भारत पर राज करना चाहते थे, केजरीवाल और अन्ना के लिए जो कुछ किया जाता वो सब महत्वहीन था जो करना संभव नहीं था बस वही महत्वपूर्ण था।
अब केजरीवाल सत्ता में  आयेंगे जहाँ केवल दो ही लोग होंगे एक केजरीवाल और दूसरा लोकपाल, क्योकि जिस न्यायायिक व्यवस्था, और प्रशासनिक व्यवस्था को ये मानते ही नहीं उसे भला कैसे अस्तित्व में रहने देंगे,हम लोकतंत्र से राजतन्त्र और फिर लोकशाही से तानाशाही तक पहुच जायेंगे फिर सरकारे मतदान से नहीं गुप्तदान से बना करेंगी और जनता जो आज तमाशबीन है कल तमाशा बन कर रह जाएगी।

3 comments:

कौशल लाल said...
This comment has been removed by the author.
Anonymous said...

wrong estimation. plz get ur facts right.don't go on rumours.

Anonymous said...

Do not know to write Hindi well. Will answer in simple English.

BJP and Congress are partners in crime - it doesn't matter who is in power, they both share profits.

They both indulge in divisive politics and "creating" issues where voting is done under name of religion and caste and frivolous issues.

If AAP comes in power, these divisive politics will end. Corruption will be controlled much better. Politics based on caste, religion will not have place, and teething issues most relevant to the progress of country will be finally discussed.

Kejriwal's ideology is of Swaraj. I recommend you read his book to get a better idea. What you suggest about 'dictatorship' is perhaps due to misinformation.

By 'Swaraj' - he means democracy in true sense - not the kind which exists now. What exists now, is not democracy, it is Polycracy (Wikipedia this term).

After AAP enters parliament, issues which we till now only hoped could be discussed will be finally discussed - education, poverty, infrastructure, economy, jobs.