शुरुआत हुयी तो जुबान नही चलती थी सिर्फ़ उँगलियों के इशारे पर जरुरत से ज्यादा माँ बाप दे दिया करते थे फिर ऊँगली के बाद कदम चलना चालू हुए और ख़ुद चीजों के पास जा उठाने की आदत पड़ी और उसके बाद जब से बोलना सीखा , पता नही चीखना और चिल्लाना कब अपने आप सीख गया, मांगना कम हुआ छीनने की आदत पड़ गई और उसके बाद भी है पूरा नही होता
पता नही कितना चाहिए और कब तक चाहिए, अब तो लोग आने वाली पीढियों का भी भण्डार में हिस्सा तय कर देते हैं और कुछ लोग की जिन्हें आने वाली पीढी छोडो आने वाले दिन के भोजन का ठिकाना नही, कितना अजीब है तकदीर का लेखा
5 comments:
Great
Complete It
You write good but little.
Agreed
agreed
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