Friday, December 12, 2008

मुद्दतें हो गई मुस्कुराये |

कुछ तो वक्त ने बदल दिया और कुछ हालत ऐसी हो गई की बदले बदले नज़र आने लगे, वरना पहले भी जिंदा तो थे ही जीना चाहता जरुर हूँ पर केवल मौत के आने तक , इससे पहले लोंगों की कोशिश है और इसके बाद मुझमे चाह नही, सौदा करता हूँ सुबह से शाम तक कभी बिकता हूँ कभी खरीदा जाता हूँ, एक आदत सी पड़ गई है इस बाज़ार में जा बैठने की .... न जाएँ तो जाएँ कहाँ
शुरुआत में सब कुछ था तो पैसा नही था और आज पैसा है तो उसके सिवा कुछ भी नही , अकेला हूँ पर ख़ुद को अकेला कहने से डरता हूँ, क्योंकि कई बार कोशिश की कि कुछ अपने हों, कोई अपना हो, लोग अपने बने भी मगर साथ छोड़ गए शहर में कोई लाश निकलती है तो एक पल के लिए सहम जाता हूँ की कही ये मेरी तो नही, कभी मुझे कोई देखे भीड़ में तनहा तनहा अलग नज़र आऊंगा, इतने सारे लोगों ने मुझे अकेला छोड़ा की अब सुबह से शाम तक अपना बोझ ढोता हुआ जी लेता हूँ
पहले बहोत कुछ ऐसा था जिसे पाना था और वही सब जिसे पाया, मेरी मजबूरियों की वजह बन गई, जरुरत तो पहले भी सिर्फ़ दो वक़्त के खाने की थी और आज भी, पर इस छोटी सी चाह ने पता नही कहाँ कहाँ घुटने टेके और कितना सौदा किया ख़ुद के साथ

7 comments:

ss said...

शुरुआत में सब कुछ था तो पैसा नही था और आज पैसा है तो उसके सिवा कुछ भी नही"
bahut acha likha aapne. pasand aaya

Vivek Gupta said...

बहुत सुंदर

परमजीत सिहँ बाली said...

बढिया पोस्ट लिखी है।

Anonymous said...

Great

abdul khan said...

bilkul sahi kaha aap ne..kabhi kabhi zindagi me sab kuch hote huye bhi kuch nahi hota...znab ye andaz hame pasand aaya.....abdul khan mangawan..

Tilak Tiwari said...

wow.............so sad .....................itna gam hai aapme maine socha nahi tha. wakai me jindgi puspon ki sej nahi kaaton ka gulista hai..............

Anonymous said...

Aapke Soch ki jitni Tarriff ki jaye Kam Hai bhai sahab.