आज एक बार फिर भारतीय प्रशासनिक सेवा को लेकर शिवराज सरकार का दोहरा चरित्र सामने आया है जब एक राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी को खुस करने या फिर यूँ कहें की राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी की राजनीतिक पहुँच के चलते सीधी भर्ती के भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक अधिकारी का स्थानांतरण महज १३ दिनों में इस लिए कर दिया गया क्योंकि जहाँ एक ओर भ्रष्टाचारियों के मंसूबे नाकाम होते नजर आ रहे थे वहीँ भ्रष्टाचार का विरोध करने वाले कुछ लोग एक इमानदार कर्मठ अधिकारी के साथ मिलकर विकास की एक नयी इबारत लिखने की तैयारी में थे जो आज के परिवेश में नदी में बहती जल धारा के विपरीत तैरने के प्रयास जैसा है।
हैरानी तो तब होती है जब एक ओर भाजपा उत्तर प्रदेश कैडर की भारतीय प्रशासनिक सेवा की अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल के पक्ष में नॉएडा में आन्दोलन कर विरोध जताती है और वहीँ दूसरी ओर भाजपा अपने स्वशासी प्रदेश मध्य प्रदेश में अकारण एक अधिकारी का १३ दिनों में स्थानांतरण कर अपनी शक्तियों के दुरूपयोग का उदहारण पेश करती है, पर मुद्दा यहीं पर आकर समाप्त नहीं हो जाता बल्कि अचम्भा तो तब और होता है जब इस स्थान पर पुनः उसी अधिकारी की नियुक्ति कर दी जाती जिसे ढाई वर्ष का कार्य काल पूरा करने के पश्चात महज १३ दिन पहले स्थानांतरित किया गया हो।
इसमें कोई दो राय नहीं की अधिकारीयों की पदोन्नति और पदस्थापना राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है पर इस अधिकार का उपयोग राज्य सरकार अपने निजी हित को साधने में नहीं बल्कि जनता के हित को ध्यान में रखकर किया करती है, ताकि प्रदेश में विकास हो, अमन चैन बना रहे, भ्रष्टाचार पर नियंत्रण किया जा सके और शासन और प्रशासन के बीच बेहतर समन्वय बना रहे, पर सरकार ने इस बार निर्णय जनता के हित को ध्यान में रखकर नहीं बल्कि एक अधिकारी की महत्वाकांक्षा को ध्यान में रखकर या यूँ कहें की अधिकारी ने अपनी राजनीतिक पहुँच साबित करने के लिए राज्य सरकार को अपने निर्णय को महज १३ दिन में बदलने के लिए विवश कर दिया और सरकार घुटनों के बल खड़े होकर बेशर्मी के अंदाज में खीसें निपोर रही है।
सरकार को प्रदेश के आमजनमानस को बताना ही होगा की ऐसी कौन सी वजह थी की उक्त अधिकारी का जिले से स्थानांतरण किया गया और फिर ऐसी कौन सी अद्रश्य मजबूरियां सामने आई की सरकार अपने निर्णय पर कायम नहीं रह पाई, ये भी समझ से परे है की जिस अधिकारी को जिले से बाहर करना १३ दिन पहले एक प्रशासनिक व्यवस्था का हिस्सा था, १३ दिन बाद वो प्रशासनिक व्यवस्था ना जाने किस विवशता का शिकार हो गयी ओर कल जो इस दरवाजे से निकाले गए थे आज उसी के लिए दरवाजे न केवल खोले गए बल्कि तोड़ दिए गए और अब वो दिन दूर नहीं जब दीवारों को तोड़ने का काम इन्ही को दिया जाएगा अब वो दीवारें इमानदारी की हों या विकास की।
सरकार का ये कदम साबित करता है कि स्थानांतरण और पदस्थापनाएं आज भी राजनीतिक दबदबा बनाने का एक जरिया है और अधिकारियों को अपने स्वार्थ की पूर्ती ना होने पर सजा के स्वरुप सरकार से मिलने वाला एक सबक, एक दंड और एक सन्देश है जो बड़े बड़े आदर्शों और सिद्धांतों की बलि लेकर देश में अपेक्षित सुराज और सुशासन की परिकल्पना को धूमिल करता है।
मै बात कर रहा हूँ मध्यप्रदेश के बैतूल जिले की जहाँ के जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री शिवनारायण सिंह चौहान का स्थानांतरण १३ दिन पहले अपर कलेक्टर रायसेन किया गया था और उनके स्थान पर सीधी भर्ती के आई ए एस अधिकारी श्री गणेश शंकर मिश्रा को बैतूल जिले की जिला पंचायत की कमान सौंपी गयी थी, श्री मिश्रा ने पदभार ग्रहण करने के बाद बैतूल जिले में जैसे ही विकास की एक नयी इबारत लिखने की कोशिश की, राज्य सरकार ने महज १३ दिन में इस कोशिश को शैशवावस्था में ही दफ़न कर दिया और दुबारा श्री शिवनारायण सिंह चौहान को बैतूल निजी संपत्ति की माफिक उपहार स्वरुप दे दिया।
जहाँ एक और श्री चौहान का अतीत अपने वरिष्ठों से अनुशासनहीनता और अपने कनिष्ठों को प्रताड़ित करने से शुरू होता है वहीँ उनकी इस स्तर की राजनीतिक पहुँच साबित करती है की राजनेताओं के लिए किसी अधिकारी का पक्ष लेने का कोई मापदंड नहीं है बल्कि ये सब मौका परस्त लोग हैं अपनी महत्वाकांक्षा और अपने मंसूबों को पूरा करने के लिए किसी भी स्तर तक गिर सकते हैं। श्री चौहान शाजापुर में चुनाव के दौरान गुजरात कैडर की महिला आई ए एस पर्यवेक्षक के साथ अभद्रता के मामले में जहाँ जांच का सामना कर रहे हैं वहीँ देवास के तत्कालीन कलेक्टर और जिला पंचायत के अध्यक्ष के साथ बदसलूकी करने की सजा के तौर पर सीधी स्थानांतरित हो चुके हैं पर फिर अपनी राजनीतिक पहुँच का लाभ लेकर बैतूल पहुँच गए थे और पुनः पहुँच गए है ये बहोत कुछ साबित करता है ।
श्री मिश्रा के ह्रदय की व्यथा इस वक़्त बहोत कुछ बयाँ करना चाहती होगी पर एक इमानदार और कर्मठ आई ए एस अधिकारी जिसने अपनी शासकीय सेवा की शुरुआत महज २ वर्ष पहले की हो उसके लिए स्थानांतरण और पदस्थापना सरकार का विशेषाधिकार है और वो सरकार के इस निर्णय को शासकीय सेवा का एक अंग समझ कर स्वीकार भी कर लेंगे क्योंकि उन्हें अभी नहीं पता की राजनीतिक लोगों के लिए शासकीय सेवकों का स्थानांतरण और उनकी पदस्थापना एक व्यवसाय है।
मुझे नहीं मालूम की इस घटना के बाद श्री मिश्रा के मन में क्या चल रहा होगा पर मै इतना जरूर जानता हूँ की मानव स्वभाव प्रश्न करने का आदि है और इस वक़्त उनके मन में कई प्रश्न सरकार के लिए और उनके परिजनों के मन में कई प्रश्न उनके लिए होंगे जो जानना चाहेंगे की क्या मजबूरी है या क्यों लाचार है ये सरकार जो १३ दिन पहले मुझे जिस जिले के योग्य समझती थी वो महज १३ दिन भी अपने निर्णय पर कायम नहीं रह पायी।
मध्यप्रदेश भारतीय प्रशासनिक सेवा संघ नॉएडा की दुर्गा शक्ति नागपाल के तो साथ खड़ा है पर अपने ही प्रदेश के एक नवनियुक्त अधिकारी के हितों की रक्षा उसे सरकार का विरोध प्रतीत होती है शायद इसीलिए खामोश है।
मै प्रदेश के मुखिया को बताना चाहता हूँ की प्रदेश की जनता इस स्थानांतरण के पीछे की हकीक़त जानती है और समझती है,अगर सरकार अपने इस निर्णय को वापस नहीं लेती है तो सरकार को अपनी वापसी का रास्ता देखना होगा, खूब सहा है, खूब बर्दाश्त किया है पर सहने और बर्दाश्त करने की एक सीमा है और उसके पार बगावत । पानी नाक तक भी हम सह लेंगे पर उसके ऊपर वही हाल होगा जो ९९ गालियों के बाद शिशुपाल का हुआ था।
मै बात कर रहा हूँ मध्यप्रदेश के बैतूल जिले की जहाँ के जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री शिवनारायण सिंह चौहान का स्थानांतरण १३ दिन पहले अपर कलेक्टर रायसेन किया गया था और उनके स्थान पर सीधी भर्ती के आई ए एस अधिकारी श्री गणेश शंकर मिश्रा को बैतूल जिले की जिला पंचायत की कमान सौंपी गयी थी, श्री मिश्रा ने पदभार ग्रहण करने के बाद बैतूल जिले में जैसे ही विकास की एक नयी इबारत लिखने की कोशिश की, राज्य सरकार ने महज १३ दिन में इस कोशिश को शैशवावस्था में ही दफ़न कर दिया और दुबारा श्री शिवनारायण सिंह चौहान को बैतूल निजी संपत्ति की माफिक उपहार स्वरुप दे दिया।
जहाँ एक और श्री चौहान का अतीत अपने वरिष्ठों से अनुशासनहीनता और अपने कनिष्ठों को प्रताड़ित करने से शुरू होता है वहीँ उनकी इस स्तर की राजनीतिक पहुँच साबित करती है की राजनेताओं के लिए किसी अधिकारी का पक्ष लेने का कोई मापदंड नहीं है बल्कि ये सब मौका परस्त लोग हैं अपनी महत्वाकांक्षा और अपने मंसूबों को पूरा करने के लिए किसी भी स्तर तक गिर सकते हैं। श्री चौहान शाजापुर में चुनाव के दौरान गुजरात कैडर की महिला आई ए एस पर्यवेक्षक के साथ अभद्रता के मामले में जहाँ जांच का सामना कर रहे हैं वहीँ देवास के तत्कालीन कलेक्टर और जिला पंचायत के अध्यक्ष के साथ बदसलूकी करने की सजा के तौर पर सीधी स्थानांतरित हो चुके हैं पर फिर अपनी राजनीतिक पहुँच का लाभ लेकर बैतूल पहुँच गए थे और पुनः पहुँच गए है ये बहोत कुछ साबित करता है ।
श्री मिश्रा के ह्रदय की व्यथा इस वक़्त बहोत कुछ बयाँ करना चाहती होगी पर एक इमानदार और कर्मठ आई ए एस अधिकारी जिसने अपनी शासकीय सेवा की शुरुआत महज २ वर्ष पहले की हो उसके लिए स्थानांतरण और पदस्थापना सरकार का विशेषाधिकार है और वो सरकार के इस निर्णय को शासकीय सेवा का एक अंग समझ कर स्वीकार भी कर लेंगे क्योंकि उन्हें अभी नहीं पता की राजनीतिक लोगों के लिए शासकीय सेवकों का स्थानांतरण और उनकी पदस्थापना एक व्यवसाय है।
मुझे नहीं मालूम की इस घटना के बाद श्री मिश्रा के मन में क्या चल रहा होगा पर मै इतना जरूर जानता हूँ की मानव स्वभाव प्रश्न करने का आदि है और इस वक़्त उनके मन में कई प्रश्न सरकार के लिए और उनके परिजनों के मन में कई प्रश्न उनके लिए होंगे जो जानना चाहेंगे की क्या मजबूरी है या क्यों लाचार है ये सरकार जो १३ दिन पहले मुझे जिस जिले के योग्य समझती थी वो महज १३ दिन भी अपने निर्णय पर कायम नहीं रह पायी।
मध्यप्रदेश भारतीय प्रशासनिक सेवा संघ नॉएडा की दुर्गा शक्ति नागपाल के तो साथ खड़ा है पर अपने ही प्रदेश के एक नवनियुक्त अधिकारी के हितों की रक्षा उसे सरकार का विरोध प्रतीत होती है शायद इसीलिए खामोश है।
मै प्रदेश के मुखिया को बताना चाहता हूँ की प्रदेश की जनता इस स्थानांतरण के पीछे की हकीक़त जानती है और समझती है,अगर सरकार अपने इस निर्णय को वापस नहीं लेती है तो सरकार को अपनी वापसी का रास्ता देखना होगा, खूब सहा है, खूब बर्दाश्त किया है पर सहने और बर्दाश्त करने की एक सीमा है और उसके पार बगावत । पानी नाक तक भी हम सह लेंगे पर उसके ऊपर वही हाल होगा जो ९९ गालियों के बाद शिशुपाल का हुआ था।
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