अब आसान नही भाजपा की जीत
अभय तिवारी
09999999069
आगामी विधानसभा चुनाओं में किस दल को बहुमत मिलेगा इसके कयास अभी से लोगों ने लगाना शुरू कर दिए हैं, जहाँ कांग्रेस गत वर्ष हुए विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनाव व हाल ही में संम्पन्न हुए कर्नाटक के चुनाव के साथ साथ मध्यप्रदेश के स्थानीय निर्वाचन में मिली सफलता से उत्साहित है वही भाजपा अपने दागी मंत्रियों और निरंकुश प्रशाशन तंत्र की वजह से गिरती साख को बचाने का भरपूर प्रयास कर रही है।
भाजपा शायद अपने पिछले दो विधानसभा चुनाव के आकंड़ो से भी भयभीत है मसलन अगर आप 2003 के विधानसभा चुनाव परिणाम पर गौर करें तो आप पाएंगे की भाजपा को कुल मतदान के 42.50 प्रतिशत वोट के साथ 173 सीटों पर सफलता प्राप्त हुयी थी वहीँ कांग्रेस को 31.70 प्रतिशत वोट के साथ केवल 38 सीटों की सफलता से समझौता करना पड़ा था लेकिन 2008 के विधानसभा चुनाव परिणाम पर अगर हम नजर डालें तो भाजपा का गिरता ग्राफ नजर आएगा, 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को कुल मतदान के 38.09 प्रतिशत वोट के साथ 143 सीटों पर ही सफलता प्राप्त हुयी थी जो पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में वोट प्रतिशत में 4.41 प्रतिशत कम व सीटों की संख्या में 30 सीट कम है, वहीं कांग्रेस को 2008 के चुनाव में कुल मतदान का 32.85 प्रतिशत वोट के साथ 71 सीटों पर सफलता प्राप्त हुयी जो पिछले विधानसभा के कांग्रेस के पक्ष में हुए मतदान प्रतिशत से 1.15 प्रतिशत अधिक और सीटों की संख्या में 33 सीटों का इजाफा है।
इसके अतिरिक्त अगर हम 2008 में भाजपा को मिली 143 सीटों में जीत के अंतर को देखें तो भाजपा के 45 प्रत्याशियों ने 5000 से भी कम वोटों से अपनी जीत दर्ज की वहीँ 2000 से कम वोटों से जीतने वाले भाजपा प्रत्याशियों की संख्या 20 व 1000 से कम वोटो से जीतने वाले प्रत्याशियों की संख्या लगभग 13 हैं, ये आंकड़े मै केवल इसलिए रख रहा हूँ की आप अनुमान लगा सकें की कितनी सीटों पर भाजपा बेहद असुरक्षित है। वहीँ एक सर्वे के मुताबिक भाजपा के 8 वर्तमान मंत्रियों की जीत भी लगभग नामुमकिन सी है इस अनुसार भाजपा की सीटों की संख्या 143 से कम होकर मात्र 90 तक ही पहुँच सकती है, पर आंकड़े अभी और भी हैं जो भाजपा को सकते में डालने के लिए काफी हैं।
सत्ता विरोधी लहर को भी इस बार नजर अन्दाज करना भाजपा के लिए इतना आसान नहीं है, वहीँ उमा भारती, प्रभात झा जैसे अनेक असंतुष्ट या साफ़ शब्दों में कहें तो शिवराज विरोधी लोग भी भाजपा के प्रदेश सिंहासन को अस्थिर करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे, और फिर अगर भाजपा इनका सामना कर भी ले जाये तो प्रदेश में नारी अपराध का बढ़ता ग्राफ, लचर क़ानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार से त्रस्त आम जनमानस इन्हें कितना माफ़ करता है देखना दिलचस्प होगा।
पिछले पांच वर्षों में मध्यप्रदेश में लोकायुक्त पुलिस ने भ्रष्टाचार के जितने मामले उजागर किये इतने देश के किसी अन्य प्रदेश में देखने को नहीं मिलते, इसे मुख्यमंत्री बेशक लोकायुक्त की सक्रियता या भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्ती के तौर पर देखते हों परन्तु हकीक़त केवल एक है की प्रदेश में नौकरशाही बलवान है व भ्रष्टाचार चरम पर है, अधिकारी कर्मचारी निरंकुश हैं और महत्वपूर्ण योजनायें लेनदेन की भेंट चढ़ रही है शायद विधानसभा चुनाव में ये भी एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरेगा।
मनरेगा में बगैर पूरी तैयारी के ई-एफएमएस लागू करके सरकार ने जिस तरह से योजना को बर्बाद किया है व गरीबों से दो वक़्त की रोटी के हक़ को छीना है उसे सरकार बेशक अपनी तकनीकी क्षमता के तौर पर देखती हो परन्तु अगर कांग्रेस ई-एफएमएस के पीछे छुपी भाजपा की राजनीतिक मंसा को आम जनता को बताने में कामयाब हो जाती है तो शायद भाजपा को उस पराजय का मुह देखना पड़ सकता है जिसकी कल्पना तक भाजपा ने नहीं की होगी।
No comments:
Post a Comment