पिता- पिता जीवन है संबल है शक्ति है,
पिता- पिता स्रष्टि के निर्माण कि अभिव्यक्ति है,
पिता- पिता उंगली पकडे बच्चे का सहारा है,
पिता- पिता कभी खट्टा कभी खारा है,
पिता- पिता पालन है पोषण है परिवार का अनुशाशन है,
पिता- पिता धौस से चलने वाला प्रेम का प्रशाशन है,
पिता- पिता रोटी है कपडा है मकान है,
पिता- पिता छोटे से परिंदे का बड़ा आसमान है,
पिता- पिता अप्रदर्शित अनंत प्यार है,
पिता- पिता है तो बच्चों को इन्तजार है,
पिता- पिता से बच्चों के ढेर सारे सपने हैं,
पिता -पिता है तो बाज़ार के सब खिलौने अपने हैं,
पिता- पिता से परिवार मे प्रतिपल राग है,
पिता- पिता से ही माँ कि बिंदी और सुहाग है,
पिता- पिता परमात्मा कि जगत के प्रति आसक्ति है,
पिता- पिता गृहस्थ आश्रम मे उच्च स्तिथि कि भक्ति है,
पिता- पिता अपनी इच्छाओं का हनन और परिवार कि पूर्ती है,
पिता- पिता रक्त निकले हुए संस्कारों कि मूर्ती है,
पिता- पिता एक जीवन को जीवन का दान है,
पिता- पिता दुनिया दिखाने का अहसान है,
पिता- पिता सुरक्षा है अगर सर पर हाथ है,
पिता- पिता नहीं है तो बचपन अनाथ है,
तो पिता से बड़ा तुम अपना नाम करो,
पिता का अपमान नहीं उन पर अभिमान करो,
क्योंकि माँ बाप कि कमी को कोई पाट नहीं सकता,
इश्वर भी इनके आशीषों को काट नहीं सकता,
विश्व मे किसी भी देवता का सम्मान दूजा है,
माँ बाप कि सेवा ही सबसे बड़ी पूजा है,
विश्व मे किसी भी तीर्थ कि यात्रायें व्यर्थ हैं,
यदि बेटे के होते हुए माता पिता असमर्थ हैं,
वो खुशनसीब हैं जिनके माँ बाप साथ होते हैं,
क्योंकि माँ बाप के आशीषों के हाथ नहीं हजारों हाथ होते हैं|
Abhay Tiwari from Mangawan Rewa is inviting you all to this blog where u can change your life. Call me on 9999999069
Tuesday, May 11, 2010
पूजा तुम्हारे लिए जिया कि तरफ से .... माँ का अहसास
माँ - माँ संवेदना है भावना है अहसास है,
माँ - माँ जीवन के फूलों में खुशबू का वास है,
माँ - माँ रोते हुए बच्चे का खुशनुमा पालना है,
माँ - माँ मरुश्थल मे नदी या मीठा सा झरना है,
माँ - माँ लोरी है गीत है प्यारी सी थाप है,
माँ - माँ पूजा कि थाली है मंत्रो का जाप है,
माँ - माँ आँखों का सिसकता हुआ किनारा है,
माँ - माँ गालों पर पप्पी है ममता कि धारा है,
माँ - माँ झुलसते दिलों मे कोयल कि बोली है,
माँ - माँ मेहँदी है कुमकुम है सिन्दूर है रोली है,
माँ - माँ कलम है दवाद है स्याही है,
माँ - माँ परमात्मा कि स्वयं एक गवाही है,
माँ - माँ त्याग है तपस्या है सेवा है,
माँ - माँ फूँक से ठंडा किया हुआ एक कलेवा है,
माँ - माँ अनुष्ठान है साधना है जीवन का हवन है,
माँ - माँ जिन्दगी के मोहल्ले मे आत्मा का भवन है,
माँ - माँ चूड़ी वाले हाथों के मजबूत कन्धों का नाम है,
माँ - माँ काशी है काबा है और चारो धाम है,
माँ - माँ चिंता है याद है हिचकी है,
माँ - माँ बच्चे कि चोट पर सिसकी है,
माँ - माँ चूल्हा धुआं रोटी और हाथों का छाला है,
माँ - माँ जिन्दगी कि कडवाहट मे अमृत का प्याला है,
माँ - माँ प्रथ्वी है जगत है धुरी है,
माँ - माँ बिना इस स्रष्टि कि कल्पना अधूरी है,
तो माँ कि ये कथा अनादी है,
ये अध्याय नहीं है,
और माँ का जीवन मे कोई पर्याय नहीं है,
माँ का महत्वा दुनिया मे कम हो नहीं सकता,
माँ जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता|
माँ - माँ जीवन के फूलों में खुशबू का वास है,
माँ - माँ रोते हुए बच्चे का खुशनुमा पालना है,
माँ - माँ मरुश्थल मे नदी या मीठा सा झरना है,
माँ - माँ लोरी है गीत है प्यारी सी थाप है,
माँ - माँ पूजा कि थाली है मंत्रो का जाप है,
माँ - माँ आँखों का सिसकता हुआ किनारा है,
माँ - माँ गालों पर पप्पी है ममता कि धारा है,
माँ - माँ झुलसते दिलों मे कोयल कि बोली है,
माँ - माँ मेहँदी है कुमकुम है सिन्दूर है रोली है,
माँ - माँ कलम है दवाद है स्याही है,
माँ - माँ परमात्मा कि स्वयं एक गवाही है,
माँ - माँ त्याग है तपस्या है सेवा है,
माँ - माँ फूँक से ठंडा किया हुआ एक कलेवा है,
माँ - माँ अनुष्ठान है साधना है जीवन का हवन है,
माँ - माँ जिन्दगी के मोहल्ले मे आत्मा का भवन है,
माँ - माँ चूड़ी वाले हाथों के मजबूत कन्धों का नाम है,
माँ - माँ काशी है काबा है और चारो धाम है,
माँ - माँ चिंता है याद है हिचकी है,
माँ - माँ बच्चे कि चोट पर सिसकी है,
माँ - माँ चूल्हा धुआं रोटी और हाथों का छाला है,
माँ - माँ जिन्दगी कि कडवाहट मे अमृत का प्याला है,
माँ - माँ प्रथ्वी है जगत है धुरी है,
माँ - माँ बिना इस स्रष्टि कि कल्पना अधूरी है,
तो माँ कि ये कथा अनादी है,
ये अध्याय नहीं है,
और माँ का जीवन मे कोई पर्याय नहीं है,
माँ का महत्वा दुनिया मे कम हो नहीं सकता,
माँ जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता|
कभी खुद से मिलूँगा तो पूछूँगा जरूर
जिन्दगी कि आपा धापी मे ना जाने क्या क्या खोया मैंने पर अफ़सोस सिर्फ खुद को खोने का है, आज अचानक ही तबियत हुई कि चलो खुद से कुछ बात कि जाये पर देख कर हैरान रह गया कि मैं खुद से कितना दूर आ चूका हूँ, यहाँ अगर अभय है तो खुद के लिए शिकायतों कि एक पोथी या फिर अनसुलझी सी एक पहेली और गर कभी किसी ने कोशिश कि सुलझाने कि तो उलझनों के सिवा कुछ हाथ नहीं लगा | जब जिन्दगी कि शुरुआत एक कोरे कागज कि तरह कि तो लगा जैसे सब कुछ कितना आसान है पर आज यही कागज किसी उजले कफ़न मे लगे खून के दाग कि मानिंद कहानिया कहता है, जाना कहाँ था और कहाँ आ गए....शायद तरक्की इसी को कहते हैं, जब बेजुबान जानवरों को शाम होते ही घरोंदो कि ओर जाता देखता हूँ तो तरस आता है अपने वजूद पर जो चंद पैसों, चंद जरूरतों, और चंद साधनों के लिए अपनों से दूर उम्र के चढ़ाव का उतार देख रहा है, कल ये भी नहीं होगा और वो भी, फिर अफ़सोस शायद इससे ज्यादा उसका होगा पर क्या करें दौड़ना तो इसी भीड़ में है गर ठहर गए तो लोग कुचल देंगे |
छोटी सी जिन्दगी, कुछ लोग ज्यादा करीब है और कुछ आस्तीनों मे सांप कि तरह लिपटे हैं पर जो अपने थे उनका कोई पता ठिकाना नहीं शायद उन्हें भी भगवान ने मेरी ही तरह दुलार रखा है, बहोत से लोगों का तो अब नाम भी सिर्फ उनकी आखरी खबर कि तरह मिलता है, मन करता है कि काश वो एक दिन और जिन्दा होता तो पूरा दिन उसके साथ गुजारता पर फिर याद आता कि कितने सारे लोग जिन्दा हैं जिनके साथ गुजारने के लिए एक पल भी नहीं, आज कल लोग लोगों कि मौत के बहाने एक दूसरे से मिल लिया करते हैं वरना इस तरक्की के दौर मे जिन्दा लोगों के घर जाने कि फुर्सत कहाँ|
अपने पराये सब कुछ जनता था पर अब परिभाषा बदल गयी, मुझे जिनकी जरुरत है वो मेरे अपने रह गए और जिन्हें मेरी जरुरत है मैं उनका अपना हो गया बाकि सब पराये हैं, रिश्ते रस्म बन गए और रास्तों मे मिले बेगाने घेर कर चल पड़े, जिन्दगी किराये के मकान कि तरह अलग अलग गलियों और अलग अलग चौखटों मे गुजार दी, आज जहाँ खड़ा हूँ यहाँ रोज सुबह से शाम तक रिश्तों का बाज़ार लगता है, बड़े बड़े रिश्ते ख़रीदे जाते हैं और अच्छे अच्छे रिश्तों को बिकते देखता हूँ, कई बार मन को ये सोच कर तसल्ली भी होती है कि अच्छा हुआ मैं अपने रिश्तों को साथ नहीं लाया वरना शायद उन्हें भी यहाँ के दस्तूर के आगे मजबूर होकर नीलाम होना होता|
हर कोई अपनों से दुखी है और हो भी क्यों न परायों के पास इतनी फुर्सत कहाँ कि वो आपको दुखी करने मे अपना कीमती वक़्त जाया करें क्या उनके अपने नहीं, वो वहां व्यस्त है, आज के दौर में गर कोई आपका अपना आपको दुखी न करे तो एक बार सोचना जरूर, हो सकता है वो आपका अपना हो ही नहीं या फिर आप तो उसे अपना समझ कर दुखी कर रहे हो पर वो आपको अपना समझता ही न हो, ऐसे लोग जो जिन्दगी मे दुःख भी न दे सकें भला उनसे और किस चीज कि उम्मीद रखी जाये, कहते हैं दुःख के बाद सुख मिलता है पर जिनसे आज तक दुःख नहीं मिला भला सुख कैसे मिलेगा|
जाने वो कैसे लोग थे जिन्हें भगवान् मिल गए हम तो एक अच्छे इंसान को भी तरसते हैं .... गर कभी कोई मिला भी तो मैं परख नहीं पाया और देर हो गयी, आखों के सामने से वो कब ओझल हो गया पता ही नहीं चला और जब पता चला तब आँख मलने के सिवा कुछ शेष न था, हो सकता है मेरी जिन्दगी मे किसी धुंधले द्रश्य कि तरह जो चंद तस्वीरें हैं वास्तव मे वो अस्तित्वा मे ही न हों पर फिर भी इन जगमगाती रातों मे भी वो धुंधलापन जीने का सहारा बनता है, मैंने उन्हें खोया मुझे गम जरूर है पर तसल्ली भी कि जो मेरा नहीं था वो आज मेरा नहीं है पर वो खुद को क्या कह कर बहलाते होंगे जिन्होंने मुझे खोया और मैं उनके सिवा आज भी किसी और का नहीं बन पाया | निभाने से भी डर लगता और आजमाने से भी, कही जिन्हें अपना समझने का भरम पाल कर ही खुस हो लेता हूँ वो भी न टूट जाये|
छोटी सी जिन्दगी, कुछ लोग ज्यादा करीब है और कुछ आस्तीनों मे सांप कि तरह लिपटे हैं पर जो अपने थे उनका कोई पता ठिकाना नहीं शायद उन्हें भी भगवान ने मेरी ही तरह दुलार रखा है, बहोत से लोगों का तो अब नाम भी सिर्फ उनकी आखरी खबर कि तरह मिलता है, मन करता है कि काश वो एक दिन और जिन्दा होता तो पूरा दिन उसके साथ गुजारता पर फिर याद आता कि कितने सारे लोग जिन्दा हैं जिनके साथ गुजारने के लिए एक पल भी नहीं, आज कल लोग लोगों कि मौत के बहाने एक दूसरे से मिल लिया करते हैं वरना इस तरक्की के दौर मे जिन्दा लोगों के घर जाने कि फुर्सत कहाँ|
अपने पराये सब कुछ जनता था पर अब परिभाषा बदल गयी, मुझे जिनकी जरुरत है वो मेरे अपने रह गए और जिन्हें मेरी जरुरत है मैं उनका अपना हो गया बाकि सब पराये हैं, रिश्ते रस्म बन गए और रास्तों मे मिले बेगाने घेर कर चल पड़े, जिन्दगी किराये के मकान कि तरह अलग अलग गलियों और अलग अलग चौखटों मे गुजार दी, आज जहाँ खड़ा हूँ यहाँ रोज सुबह से शाम तक रिश्तों का बाज़ार लगता है, बड़े बड़े रिश्ते ख़रीदे जाते हैं और अच्छे अच्छे रिश्तों को बिकते देखता हूँ, कई बार मन को ये सोच कर तसल्ली भी होती है कि अच्छा हुआ मैं अपने रिश्तों को साथ नहीं लाया वरना शायद उन्हें भी यहाँ के दस्तूर के आगे मजबूर होकर नीलाम होना होता|
हर कोई अपनों से दुखी है और हो भी क्यों न परायों के पास इतनी फुर्सत कहाँ कि वो आपको दुखी करने मे अपना कीमती वक़्त जाया करें क्या उनके अपने नहीं, वो वहां व्यस्त है, आज के दौर में गर कोई आपका अपना आपको दुखी न करे तो एक बार सोचना जरूर, हो सकता है वो आपका अपना हो ही नहीं या फिर आप तो उसे अपना समझ कर दुखी कर रहे हो पर वो आपको अपना समझता ही न हो, ऐसे लोग जो जिन्दगी मे दुःख भी न दे सकें भला उनसे और किस चीज कि उम्मीद रखी जाये, कहते हैं दुःख के बाद सुख मिलता है पर जिनसे आज तक दुःख नहीं मिला भला सुख कैसे मिलेगा|
जाने वो कैसे लोग थे जिन्हें भगवान् मिल गए हम तो एक अच्छे इंसान को भी तरसते हैं .... गर कभी कोई मिला भी तो मैं परख नहीं पाया और देर हो गयी, आखों के सामने से वो कब ओझल हो गया पता ही नहीं चला और जब पता चला तब आँख मलने के सिवा कुछ शेष न था, हो सकता है मेरी जिन्दगी मे किसी धुंधले द्रश्य कि तरह जो चंद तस्वीरें हैं वास्तव मे वो अस्तित्वा मे ही न हों पर फिर भी इन जगमगाती रातों मे भी वो धुंधलापन जीने का सहारा बनता है, मैंने उन्हें खोया मुझे गम जरूर है पर तसल्ली भी कि जो मेरा नहीं था वो आज मेरा नहीं है पर वो खुद को क्या कह कर बहलाते होंगे जिन्होंने मुझे खोया और मैं उनके सिवा आज भी किसी और का नहीं बन पाया | निभाने से भी डर लगता और आजमाने से भी, कही जिन्हें अपना समझने का भरम पाल कर ही खुस हो लेता हूँ वो भी न टूट जाये|
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