दो लोग देश के सर्वोच्च सिंहासन पर बैठने की जुगत में इस कदर लगे हुए हैं की एक दूसरे पर अलोकतांत्रिक शब्दों का प्रयोग करना इनकी आदत बन चुकी है , संयम और सादगी तो जैसे किताबों की बात, एक को कठपुतली कहा जाता है तो दूसरे को आतंकवादियों को रिहा करने का इल्जाम दिया जाता है , एक मात्र भाषा से परहेज रखतें हैं तो दूसरे जिन्ना की तारीफ़ में पीछे नही हटते, दोनों ही सच कहते हैं एक दूसरे के बारे में, अब जनता को सोचना चाहिए की किसकी गलतियों को माफ़ कर सत्ता सौपनी है।
बहोत से ख़राब लोगों में एक कम ख़राब को चुनना तो हमारी मजबूरी है ही, और जब हम मजबूर होकर कोई सरकार बनायेंगे तो वो मजबूत होगी की मजबूर सब जानते हैं।
जिस देश में धर्म और मजहब के नाम पर चुनाव जीतने की परम्परा हो वहां अगर हर दल किसी एक जाती, धर्म या मजहब का सरंक्षक बनने की कोशिश करता है या खुले शब्दों में कहें की धर्म की ठेकेदारी करता है तो क्या हर्ज़ है क्योंकि ये आदत तो हमनें ही डाली है न ।
एक हिन्दुओं के ठेकेदार हैं तो दूसरे मुस्लिम लोगों के हितों की रक्षा करने का दम भरते है, एक दलितों के नाम पर सत्ता सुख भोगने की चेष्टा रखते हैं तो कुछ कभी इस दल में कभी उस दल में कभी दल दल में नजर आते हैं, ये है मेरे देश के लोतंत्र की तस्वीर।
जागो अभी भी वक़्त है, इससे पहले की पानी सर के ऊपर से गुजरने लगे, अच्छे लोगों को चुन कर देश की बागडोर सौप दो।