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Wednesday, December 17, 2008
तेरे जाने की कशमकश|
तुम मेरे पास हो पर हर बार तुम्हारा दूर जाने का वादा करना और फिर रिश्तों को वहीँ लाकर खड़ा कर देना, शायद इम्तिहान है और मेरे
Monday, December 15, 2008
तेरे मासूम सवाल
शुरुआत हुयी तो जुबान नही चलती थी सिर्फ़ उँगलियों के इशारे पर जरुरत से ज्यादा माँ बाप दे दिया करते थे फिर ऊँगली के बाद कदम चलना चालू हुए और ख़ुद चीजों के पास जा उठाने की आदत पड़ी और उसके बाद जब से बोलना सीखा , पता नही चीखना और चिल्लाना कब अपने आप सीख गया, मांगना कम हुआ छीनने की आदत पड़ गई और उसके बाद भी है पूरा नही होता
पता नही कितना चाहिए और कब तक चाहिए, अब तो लोग आने वाली पीढियों का भी भण्डार में हिस्सा तय कर देते हैं और कुछ लोग की जिन्हें आने वाली पीढी छोडो आने वाले दिन के भोजन का ठिकाना नही, कितना अजीब है तकदीर का लेखा
Friday, December 12, 2008
मुद्दतें हो गई मुस्कुराये |
कुछ तो वक्त ने बदल दिया और कुछ हालत ऐसी हो गई की बदले बदले नज़र आने लगे, वरना पहले भी जिंदा तो थे ही जीना चाहता जरुर हूँ पर केवल मौत के आने तक , इससे पहले लोंगों की कोशिश है और इसके बाद मुझमे चाह नही, सौदा करता हूँ सुबह से शाम तक कभी बिकता हूँ कभी खरीदा जाता हूँ, एक आदत सी पड़ गई है इस बाज़ार में जा बैठने की .... न जाएँ तो जाएँ कहाँ
शुरुआत में सब कुछ था तो पैसा नही था और आज पैसा है तो उसके सिवा कुछ भी नही , अकेला हूँ पर ख़ुद को अकेला कहने से डरता हूँ, क्योंकि कई बार कोशिश की कि कुछ अपने हों, कोई अपना हो, लोग अपने बने भी मगर साथ छोड़ गए शहर में कोई लाश निकलती है तो एक पल के लिए सहम जाता हूँ की कही ये मेरी तो नही, कभी मुझे कोई देखे भीड़ में तनहा तनहा अलग नज़र आऊंगा, इतने सारे लोगों ने मुझे अकेला छोड़ा की अब सुबह से शाम तक अपना बोझ ढोता हुआ जी लेता हूँ
पहले बहोत कुछ ऐसा था जिसे पाना था और वही सब जिसे पाया, मेरी मजबूरियों की वजह बन गई, जरुरत तो पहले भी सिर्फ़ दो वक़्त के खाने की थी और आज भी, पर इस छोटी सी चाह ने पता नही कहाँ कहाँ घुटने टेके और कितना सौदा किया ख़ुद के साथ
Friday, December 5, 2008
अब मै चुप रहूँगा
मैंने जब सोचा की आवाज उठाउंगा तो पता नही कितने नाजुक रिस्तों ने मुझे खामोश होने के लिए मजबूर किया, मैं जिसने देश की असली तस्वीर दिखाने की कोशिश की तो उसे रोक दिया गया क्योंकि शायद अपनों को ये डर था की कहीं मैं खो न जाऊँ, मुझे मालूम है एक एक शहादत की हकीक़त, और हर बन्दे का खून मां के खून का हवाला देता है बात सिर्फ़ मुंबई की नही है पुरे हिंदुस्तान , हर शहर, हर मोहल्ले, हर घर और हर परिवार की है, मैं अदना हूँ मगर हिन्दुस्तान की संवेदना हूँ ब्लास्ट के वक्त मैं किस राज्य में था इससे फर्क नही पड़ता, फर्क ये पड़ता है मैं अब तक जिन्दा क्यों हूँ , मैं एक आम आदमी हूँ लेकिन मेरी मां, मेरी बेटी, मेरी पत्नी, मेरे पिता और मेरा पड़ोसी सब इस आतंकवाद की आग में जले हैं आज मैं सो जाऊं तो मेरे पास नींद नही है
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