Wednesday, May 29, 2013

अब आसान नही भाजपा की जीत - Election 2013 in Madhya Pradesh

 

अब आसान नही भाजपा की जीत 

 
अभय तिवारी 
09999999069
 
                   आगामी विधानसभा चुनाओं में किस दल को बहुमत मिलेगा इसके कयास अभी से लोगों ने लगाना शुरू कर दिए हैं, जहाँ कांग्रेस गत वर्ष हुए विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनाव व हाल ही में संम्पन्न हुए कर्नाटक के चुनाव के साथ साथ मध्यप्रदेश के  स्थानीय निर्वाचन में मिली सफलता से उत्साहित है वही भाजपा अपने दागी मंत्रियों और निरंकुश प्रशाशन तंत्र की वजह से गिरती साख को बचाने का भरपूर प्रयास कर रही है।
 
                    भाजपा शायद अपने पिछले दो विधानसभा चुनाव के आकंड़ो से भी भयभीत है मसलन अगर आप 2003 के विधानसभा चुनाव परिणाम पर गौर करें तो आप पाएंगे की भाजपा को कुल मतदान के  42.50 प्रतिशत वोट के साथ 173 सीटों पर सफलता प्राप्त हुयी थी वहीँ कांग्रेस को 31.70 प्रतिशत वोट के साथ केवल 38 सीटों की सफलता से समझौता करना पड़ा था लेकिन 2008 के विधानसभा चुनाव परिणाम पर अगर हम नजर डालें तो भाजपा का गिरता ग्राफ नजर आएगा, 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को कुल मतदान के  38.09 प्रतिशत वोट के साथ 143 सीटों पर ही सफलता प्राप्त हुयी थी जो पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में वोट प्रतिशत में  4.41 प्रतिशत कम व सीटों की संख्या में  30 सीट कम है, वहीं कांग्रेस को 2008 के चुनाव में कुल मतदान का 32.85 प्रतिशत वोट के साथ 71 सीटों पर सफलता प्राप्त हुयी  जो पिछले विधानसभा के कांग्रेस के पक्ष में हुए मतदान प्रतिशत से 1.15 प्रतिशत अधिक और सीटों की संख्या में 33 सीटों का इजाफा है।
 
                     इसके अतिरिक्त अगर हम 2008 में भाजपा को मिली 143 सीटों में जीत के अंतर को देखें तो भाजपा के 45 प्रत्याशियों ने  5000 से भी कम वोटों से अपनी जीत दर्ज की वहीँ 2000 से कम वोटों से जीतने वाले भाजपा प्रत्याशियों की संख्या 20 व 1000 से कम वोटो से जीतने वाले प्रत्याशियों की संख्या लगभग 13 हैं, ये आंकड़े मै केवल इसलिए रख रहा हूँ की आप अनुमान लगा सकें की कितनी सीटों पर भाजपा बेहद असुरक्षित है। वहीँ एक सर्वे के मुताबिक भाजपा के 8 वर्तमान मंत्रियों की जीत भी लगभग नामुमकिन सी है इस अनुसार भाजपा की सीटों की संख्या 143 से कम  होकर मात्र 90 तक ही पहुँच सकती है, पर आंकड़े अभी और भी हैं जो भाजपा को सकते में डालने के लिए काफी हैं।
 
                       सत्ता विरोधी लहर को भी इस बार नजर अन्दाज करना भाजपा के लिए इतना आसान नहीं है, वहीँ उमा भारती, प्रभात झा जैसे अनेक असंतुष्ट या साफ़ शब्दों में कहें तो शिवराज विरोधी लोग भी भाजपा के प्रदेश सिंहासन को अस्थिर करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे, और फिर अगर भाजपा इनका सामना कर भी ले जाये तो प्रदेश में नारी अपराध का बढ़ता ग्राफ, लचर क़ानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार से त्रस्त आम जनमानस इन्हें कितना माफ़ करता है देखना दिलचस्प होगा।
                         पिछले पांच  वर्षों में मध्यप्रदेश में लोकायुक्त पुलिस ने भ्रष्टाचार के जितने मामले उजागर किये इतने देश के किसी अन्य प्रदेश में देखने को नहीं मिलते, इसे मुख्यमंत्री बेशक लोकायुक्त की सक्रियता या भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्ती के तौर पर देखते हों परन्तु हकीक़त केवल एक है की प्रदेश में नौकरशाही बलवान है व भ्रष्टाचार चरम पर है, अधिकारी कर्मचारी निरंकुश हैं और महत्वपूर्ण योजनायें लेनदेन की भेंट चढ़ रही है शायद विधानसभा चुनाव में ये भी एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरेगा।
                           मनरेगा में बगैर पूरी तैयारी के ई-एफएमएस लागू करके सरकार ने जिस तरह से योजना को बर्बाद किया है व गरीबों से दो वक़्त की रोटी के हक़ को छीना है उसे सरकार बेशक अपनी तकनीकी क्षमता के तौर पर देखती हो परन्तु अगर कांग्रेस  ई-एफएमएस के पीछे छुपी भाजपा की राजनीतिक मंसा को आम जनता को बताने में कामयाब हो जाती है तो शायद भाजपा को उस पराजय का मुह देखना पड़ सकता है जिसकी कल्पना तक भाजपा ने नहीं की होगी।
 
 
 
 


Friday, May 24, 2013

मनरेगा में ई-एफएमएस - योजना मूल उद्देश्य से भटकी E-fms In MGNREGA

मनरेगा में ई-एफएमएस - योजना मूल उद्देश्य से भटकी

- अभय तिवारी

 
             केंद्र सरकार की बहुचर्चित योजना महात्मा गाँधी राष्टीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना जॉबकार्ड धारी परिवार को सौ दिवस का रोजगार उपलब्ध  कराने  के अपने मूल उद्देश्य से भटकती जा रही है और उसका कारण योजना में व्याप्त भ्रष्टाचार को रोकने के लिए उठाये जा रहे अदूरदर्शी कदम है जिसका एक नमूना ई-एफएमएस  भी है।
             सरकार इस योजना में भ्रष्टाचार की रोज मिलती शिकायतों से इस कदर परेशान हो चुकी थी की भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए ऐसे प्रयोग कर बैठी जिससे भ्रष्टाचार पर कितना नियंत्रण होगा ये तो अभी महज एक कल्पना बनी हुयी है पर योजना के क्रियान्वयन पर पड़ने वाले इसके दुष्प्रभाव अभी से नजर आने लगे हैं। जहाँ लेबर बजट के अनुसार मई माह तक कुल 22271465 मानव दिवस का सृजन किया जाना था वहीँ आधी अधूरी तैयारी के साथ ई-एफएमएस  लागू करने के फलस्वरूप केवल 795825 मानव दिवस सृजित किया जा सका है जो निर्धारित लक्ष्य का मात्र 3.57  प्रतिशत है। वहीँ दूसरी ओर अगर हम योजना पर व्यय की बात करें तो लेबर बजट के मान से मई माह तक 57004.91 लाख का व्यय अनुमानित था परन्तु  ई-एफएमएस  की वजह से आ रही परेशानियों का नतीजा यह निकला की हम मई माह तक कुल 1806.71 लाख का ही व्यय योजना क्रियान्वयन पर कर पाए जो निर्धारित लक्ष्य का मात्र 3.10 प्रतिशत है। इसके अतिरिक्त योजना को पारदर्शी बनाने के लिए भारत सरकार द्वारा निर्मित एम आई एस सॉफ्टवेर में प्रदर्शित आंकड़े भी गलत प्रतीत होते हैं जैसे अगर हम श्रम और सामग्री के अनुपात की बात करें तो कुल व्यय का 1463.03 लाख श्रम में व्यय दर्शाया जा रहा है जो कुल व्यय का 84.78 प्रतिशत है और सामग्री में कुल व्यय 262.73 है जो कुल व्यय का 15.22 प्रतिशत है, यदि  श्रम  और  सामग्री  का  ये  अनुपात  पिछले वित्तीय वर्ष में होता तो  शायद  मध्यप्रदेश  इस  योजना  के  बेहतरीन  क्रियान्वन करने वाले राज्यों में प्रथम  स्थान  पर होता   परन्तु  ये  आकडे वित्तीय वर्ष 2013-2014 के हैं और सामग्री में व्यय इसलिए कम नहीं प्रदर्शित हो रहा है की श्रम प्रधान कार्य किये जा रहे हैं बल्कि सामग्री में व्यय कम प्रदर्शित होने का कारन भी  ई-एफएमएस  ही है जिसकी अनिवार्यता की वजह से सामग्री के भुगतान में तकनीकी समस्या आ रही है और जिसके जल्द निराकरण की दूर दूर तक कोई तस्वीर भी नजर नहीं आती।
              आप ये जानकार हैरान होंगे की मनरेगा कर्मियों का वेतन भी  ई-एफएमएस  की वजह से लम्बे समय से जारी नहीं हो पाया है वजह फिर वही है की बगैर संपूर्ण तकनीकी संसाधनों के  ई-एफएमएस  को लागू करना। आज भी प्रशासनिक व्यय के लिए  ई-एफएमएस  में कोई प्रावधान नहीं है, ऐसे में प्रश्न उठता है की राज्य सरकार को  ई-एफएमएस  व्यवस्था को लागू करने की ऐसी भी क्या जल्दी थी की एक सुविधा समूचे प्रदेश के मजदूरों, सामग्री प्रदाताओं व योजना से जुड़े कर्मियों के लिए सबसे बड़ी  असुविधा बन चुकी है।
             योजना के अंतर्गत मुख्यतः तीन तरह के भुगतान किये जाते हैं, मजदूरी का भुगतान, सामग्री का भुगतान व प्रशासनिक व्यय जिसके अंतर्गत मनरेगा कर्मियों के वेतन से लेकर योजना क्रियान्वयन के लिए आवश्यक अन्य व्यय शामिल हैं। जब राज्य सरकार के पास सामग्री और प्रशासनिक व्यय का  ई-एफएमएस  से भुगतान करने की पूर्ण तैयारी नहीं थी तब भुगतान के इस माध्यम को अपनाना और चेक जारी करने पर प्रतिबन्ध लगाना कितना उचित था।  
              मेरी बातों का आप ये अर्थ मत लगाइए की सामग्री का भुगतान व प्रशासनिक व्यय के लिए नहीं पर मजदूरी का भुगतान  ई-एफएमएस  के माध्यम से करने के लिए सरकार पूरी तरह से तैयार थी, नहीं ऐसा बिलकुल नहीं है।  ई-एफएमएस  के माध्यम से उन्ही श्रमिको को भुगतान किया जा सकता है जिनका बैंक खाता भुगतान हेतु फ्रीज किया गया हो और वर्तमान में कुल पंजीकृत 38469457 श्रमिको में से केवल 1749877 श्रमिकों के ही बैंक खाते फ्रीज़ हो पाए हैं जो निर्धारित लक्ष्य का मात्र 4.5 प्रतिशत है, अर्थात मध्यप्रदेश सरकार वर्तमान में  ई-एफएमएस  के माध्यम से  केवल 4.5 प्रतिशत श्रमिकों का ही भुगतान कर सकती है। आकड़ों से स्पष्ट है की राज्य सरकार की  ई-एफएमएस  लागू करने के पूर्व की तैयारियां लगभग शून्य थी ऐसे में सरकार को किसी भी नयी व्यवस्था को लागू करने से पहले योजना के मूल उद्देश्य को नहीं भूलना चाहिए था, हमारे पास भ्रष्टाचार को रोकने के लिए विभिन्न तरह की जांच एजेंसियां थी जिन्हें इसपर और मजबूती से काम करने के लिए बाध्य किया जा सकता था ना की लोगों को रोजगार की ग्यारंटी देने वाली योजना से रोजगार देने का काम बंद करना चाहिए था।
               आज आप किसी भी जनपद या जिला पंचायत कार्यालय जाकर अगर लोगों की  ई-एफएमएस  के बारे में  राय लेंगे तो हर अधिकारी और कर्मचारी एक सुर में इसे गलत करार देता नजर आयेगा परन्तु आज तक किसी भी जिले से किसी भी स्तर के अधिकारी ने  ई-एफएमएस  से योजना को हो रहे नुकसान से सरकार को अवगत नहीं कराया उसका मुख्य कारण ये था की जो भी  ई-एफएमएस  व्यवस्था के खिलाफ बोलेगा उसे भ्रष्टाचार का समर्थक माना जायेगा। आज मनरेगा से जुड़े हर अधिकारी और कर्मचारी के लिए  ई-एफएमएस  का समर्थन करना खुद को सबसे बड़ा इमानदार साबित करने का एक और एक मात्र रास्ता बचा है, समझ नहीं आता हर अधिकारी और कर्मचारी  ई-एफएमएस  का समर्थक और भ्रष्टाचार का विरोधी है तो फिर ये भ्रष्टाचार कर कौन रहा था।
            शायद सरकार  ई-एफएमएस  लागू करके प्रदेश को उच्च तकनीकी क्षमताओं वाले राज्यों में शामिल करना चाहती होगी पर यदि ऐसा है भी तो इन्हें केवल वही योजना नजर आई जिससे गरीब मजदूरों को दो वक़्त की रोटी नसीब होती है, क्या सरकार की अन्य योजनाओं में भ्रष्टाचार नहीं है जो इस तरह के प्रयोग वहां नहीं किये गए, या इस तरह के प्रयोग वहां नहीं किये गए जहाँ हितग्राही मध्यम या उच्च वर्गीय परिवार थे,  ई-एफएमएस  के पीछे की मंसा को भी गहराई से समझना और समझाना जरूरी है वर्ना वो दिन दूर नहीं जब गरीबों को रोटियां भी कंप्यूटर की स्क्रीन पर दिखाई जाएगी।
            चलिए अब  ई-एफएमएस  को राष्टीय स्तर पर देखते हैं, आप अचंभित हो जायेंगे की केवल मध्य प्रदेश ने ही अपने सभी जिलों में ये व्यवस्था लागू करके योजना को समाप्त किया है जबकि शतप्रतिशत साक्षर प्रदेश केरल में केवल 5 जिलों में, देश में सर्व प्रथम ई-गवर्नेंस को लागू करने और कंप्यूटर का शासकीय कार्यों में अधिकतम उपयोग करने वाले राज्य आँध्रप्रदेश में केवल 4 जिलों में, देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश में केवल 18 जिलों में और मध्यप्रदेश के विभाजित तथा भाजपा शासित छत्तीसगढ़ के केवल एक जिले में  ई-एफएमएस  व्यवस्था लागू है फिर मध्यप्रदेश को 48 जिलों में ये असफल प्रयोग करने की क्या सूझी होगी, जबकि हकीक़त ये है की जिन राज्यों का उदहारण दिया गया है ये  ई-एफएमएस  व्यवस्था लागू करने में मध्यप्रदेश से ज्यादा सक्षम थे परन्तु उन्होंने इसे केवल इस लिए लागू नहीं किया क्योंकि वो जानते थे कि  ई-एफएमएस  को लागू करने में आने वाली व्यवहारिक कठिनाईयां मजदूर से दो वक़्त की रोटी का हक भी छीन लेगी।
            देश में जितने भी बड़े निर्माण हुए हैं वो शायद इसीलिए संभव हो पाए की वहां  ई-एफएमएस  की प्राथमिकता से ज्यादा निर्माण की प्राथमिकता थी, अगर वहां भी  ई-एफएमएस  जैसी परिकल्पना कर ली जाती तो शायद हमें मैट्रो रेल, फ्लाई ओवर, उच्च स्तरीय सड़के, बड़े बड़े ब्रिज और अक्षरधाम जैसे भव्य मंदिर के निर्माण की केवल शुरुआत ही देखने का अवसर मिल पाता। आज तक सुना था कि कंप्यूटर जैसी तकनीक का उपयोग करके हम अपने कार्यों को तीव्रता दे सकते है और अपेक्षा से ज्यादा अच्छे परिणाम पा सकते हैं पर पहली बार ये देखने में आ रहा है की चंद लोगों की अदूरदर्शी सोच कैसे वरदान को अभिशाप में बदल सकती है। वो ग्रामीण लोग जो कंप्यूटर को एक जादू मानते थे अब उन्हें यकीन हो गया की ये सच में एक जादू ही है जिसने लोगों की थाली से रोटी गायब कर दी।
              शायद सरकार ये सोचती है की गाँव का गरीब   ई-एफएमएस  के पूरी तरह क्रियाशील होने का  इन्तेजार करेगा जबकि हकीक़त ये है की या तो वो प्रदेश से पलायन करेगा या फिर पैसा कमाने के अन्य रास्तो की ओर नजर ले जायेगा जिसमे अपराध भी शामिल होगा, फिर शायद हम  ई-एफएमएस  में सफल हो भी जाएँ तो क्या हम अपने नैतिक मूल्यों को खोकर आने वाले भारत के निर्माण की कल्पना करेंगे और निर्मित भारत कितना भयावह होगा इसकी परिकल्पना शायद हम अभी कर ही नहीं सकते।
           अविश्वास किस पर किया जा रहा है ये तो अभी नहीं मालूम पर  ई-एफएमएस  की आवश्यकता से तो यही जान पड़ता है की सरकार भ्रष्टाचार के लिए पूरी तरह से उस पंचायत सचिव को जिम्मेदार मान रही है जिसके बगैर इस योजना का क्रियान्वयन अकल्पनीय है।  
             चुनावी वर्ष में इतना गलत कदम किसी सोची समझी रणनीति का हिस्सा भी हो सकती है क्योंकि ये कदम चुनाव के नतीजों को प्रभावित करेगा परन्तु इसका लाभ  भाजपा को मिलेगा या कांग्रेस को इस बारे में मत भिन्न भिन्न हो सकते हैं पर इसका नुक्सान आम जनता भुगतेगी इस बारे में कोई मतभेद नहीं हैं।