Saturday, June 8, 2013

लोकतंत्र, नैतिकता और इस्तीफ़ा -

लोकतंत्र, नैतिकता और इस्तीफ़ा 

- अभय तिवारी 
09999999069
 

लोकतंत्र, नैतिकता और इस्तीफ़ा जैसे शब्द अब राजनीतिक शब्दावली  का पर्याय बन चुके हैं, हर राजनीतिक दल इन्ही शब्दों का उपयोग करके अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने में लगा हुआ  है जबकि हकीक़त ये है की ये शब्द अब नेताओ की कारगुजारी या साफ कहें काले कारनामों को छुपाने का बहोत बड़ा माध्यम बन चुके हैं हर कोई खुद को इनके दायरे से बाहर रखता है और दूसरों को इनके महत्व को बताने का प्रयास करता है, आम जनता भ्रमित होती है और बारी बारी से सब पर भरोसा करती है।
जिस भाजपा ने कुछ दिन पहले नैतिकता के आधार पर केंद्र सरकार से इस्तीफा - इस्तीफा खेलने की कोशिश की और सदन की कारवाही में व्यवधान उत्पन्न कर आम  जनता  के हितों को प्रभावित किया वही भाजपा बीसीसीआई और आईपीएल में नैतिकता भूल गयी, और भाजपा ही भर नहीं श्रीनिवासन के मुद्दे पर तमाम राजनीतिक दलों का जो रुख रहा है उससे तो यही साबित होता है की नैतिकता इन सभी के लिए एक पूँजी है जिसे जब जरुरत पड़ती है बेंचकर अपना काम चलाया जाता है। हर राजनीतिक दल को  नैतिकता केवल तब याद आती है जब विरोधी दल को कोसना होता है, ये नैतिकता कम और एक राजनीतिक हथियार ज्यादा नजर नजर आती है जिसका उपयोग हम आये दिन देखते है।
यूँ तो नैतिकता की परिभाषा सबको पता है पर राजनीती में इसकी कोई स्थायी परिभाषा नहीं है, छत्तीसगढ़ में राजनीतिक लोगों पर नक्सली हमला हुआ तो मुख्यमंत्री से इस्तीफा मांगने की वजह नैतिकता थी पर वहीँ कुछ दिन पहले जब सीआरपीफ के जवानों को निशाना बनाया गया तब शायद कांग्रेस को नैतिकता की याद नहीं आई, जवानों पर हमला महज एक नक्सली वारदात थी जिसके लिए कोई जिम्मेदार नहीं था पर राजनीतिक लोगों पर हमला लोकतंत्र पर हमला माना गया और इसकी नैतिक जिम्मेदारी भी खोजने की पुरजोर कोशिश की गयी जिस पर तब विराम लगा जब एनआईए ने कांग्रेस के ही कुछ लोगों पर संदेह करना शुरू कर दिया।
मतलब साफ़ है की राजनीतिक दलों की मौका परस्ती आम जनमानस की समझ से परे है जिसका ये सब उपयोग करने की कोशिश करते है।