Saturday, July 25, 2009

तेरे लिए दुखी हूँ, तेरी वजह से नही.....

एक पल के लिए किसी पर नज़र जाना और फिर हर पल उसी नज़र के लिए तरसना, कैसा रिश्ता है ये तो नही मालूम पर पिछले जन्म की कोई अधूरी दास्तान या फिर अगले जन्म का अहसास कराता हुआ तेरा वजूद न जाने क्यों जीने के लिए मजबूर करता है। जिंदगी कई हिस्सों मे बाटी थी हमने पर अब एक हिस्सा छोड़ सारा आपके नाम कर दिया जो आपके पास है वो शायद इसलिए की जिन्दगी की वीरान राहों मे कभी आपको अकेलेपन का अहसास न हो और जो मेरे पास है वो शायद दुनिया मे किसी मासूम बच्चे की मुस्कराहट सा अपना अस्तित्व खोजता है । अपने भीतर मैंने कई बार झांक कर देखा तो जरूर, पर कभी वो जीने की चाह नही नजर आई जो आज महसूस होती है । पहले मौत से भी डर नही लगता था और अब जिन्दगी से भी घबराता हूँ , पहले किसी का नही था और अब कहीं का नही हूँ, एक साथ की चाह ने तनहाइयों का अहसास करा रखा है, कभी ये सोचा भी नही था की जिसे अपने लिए जीने में परहेज हो वो किसी और के लिए ग्रहणों का वास्ता लेकर जिन्दगी खोजने निकले । बाज़ार में बिकना हमारी आदत थी पर नीलाम पहली बार हुए, ख़ुद की कीमत देकर हम तुम्हे खुदा बनाने निकले हैं। दिल मेरे पास भी है ये नाना नानी के किस्से और कहानी सी बात होती थी पर तुमने मेरी हसरतों की दुनिया बसाकर इसके अस्तित्व को बल दिया है। जब कभी लहुलुहान नज़रें आइना देखती हैं तो एक अजीब सा तूफ़ान नजर आता है आँखों मे, और उस तूफ़ान मे घिरा अकेला अभय एक आवाज दे रहा होता है जिसे कोई शायद कभी न समझ सके या सुन सके। ऐसा नही की ये अक्सर होता रहा है जिन्दगी में, पर जब हुआ समझ से परे था । तुम्हे समझाना या समझना मेरे मन और मस्तिस्क दोनों के दायरे से बाहर की बात है पर हम ने जिदगी भर अपने दिल से लडाई की है, इसलिए आदत नही फितरत सी हो चुकी है ख़ुद को बेंच कर दर्द खरीदने की पर शायद इस बार सौदा जरा मंहगा पड़ा।